tag:blogger.com,1999:blog-65296837317160156142024-03-19T16:12:02.145-07:00GYAN KI DUNIYAMoti sutharhttp://www.blogger.com/profile/15667379934155747814noreply@blogger.comBlogger72125tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-673397748474491172016-08-21T22:58:00.001-07:002016-08-21T22:58:44.730-07:00चिड़िया की कहानी<p dir="ltr">बहुत पहले आप ने एक चिड़िया की कहानी सुनी होगी...</p>
<p dir="ltr">जिसका एक दाना पेड़ के कंदरे में कहीं फंस गया था...</p>
<p dir="ltr">चिड़िया ने पेड़ से बहुत अनुरोध किया उस दाने को दे देने के लिए लेकिन पेड़ उस छोटी सी चिड़िया की बात भला कहां सुनने वाला था...</p>
<p dir="ltr">हार कर चिड़िया बढ़ई के पास गई और उसने उससे अनुरोध किया कि तुम उस पेड़ को काट दो, क्योंकि वो उसका दाना नहीं दे रहा...</p>
<p dir="ltr">भला एक दाने के लिए बढ़ई पेड़ कहां काटने वाला था...</p>
<p dir="ltr">फिर चिड़िया राजा के पास गई और उसने राजा से कहा कि तुम बढ़ई को सजा दो क्योंकि बढ़ई पेड़ नहीं काट रहा और पेड़ दाना नहीं दे रहा...</p>
<p dir="ltr">राजा ने उस नन्हीं चिड़िया को डांट कर भगा दिया कि कहां एक दाने के लिए वो उस तक पहुंच गई है। <br>
चिड़िया हार नहीं मानने वाली थी...</p>
<p dir="ltr">वो महावत के पास गई कि अगली बार राजा जब हाथी की पीठ पर बैठेगा तो तुम उसे गिरा देना, क्योंकि राजा बढ़ई को सजा नहीं देता...<br>
बढ़ई पेड़ नहीं काटता...<br>
पेड़ उसका दाना नहीं देता...<br>
महावत ने भी चिड़िया को डपट कर भगा दिया...</p>
<p dir="ltr">चिड़िया फिर हाथी के पास गई और उसने अपने अनुरोध को दुहराया कि अगली बार जब महावत तुम्हारी पीठ पर बैठे तो तुम उसे गिरा देना क्योंकि वो राजा को गिराने को तैयार नहीं...</p>
<p dir="ltr">राजा बढ़ई को सजा देने को तैयार नहीं...<br>
बढ़ई पेड़ काटने को तैयार नहीं...<br>
पेड़ दाना देने को राजी नहीं।<br>
हाथी बिगड़ गया...<br>
उसने कहा, ऐ छोटी चिड़िया..<br>
तू इतनी सी बात के लिए मुझे महावत और राजा को गिराने की बात सोच भी कैसे रही है?</p>
<p dir="ltr">चिड़िया आखिर में चींटी के पास गई और वही अनुरोध दोहराकर कहा कि तुम हाथी की सूंढ़ में घुस जाओ...<br>
चींटी ने चिड़िया से कहा, "चल भाग यहां से...बड़ी आई हाथी की सूंढ़ में घुसने को बोलने वाली।</p>
<p dir="ltr">अब तक अनुरोध की मुद्रा में रही चिड़िया ने रौद्र रूप धारण कर लिया...उसने कहा कि "मैं चाहे पेड़, बढ़ई, राजा, महावत, और हाथी का कुछ न बिगाड़ पाऊं...पर तुझे तो अपनी चोंच में डाल कर खा ही सकती हूँ...</p>
<p dir="ltr">*चींटी डर गई...भाग कर वो हाथी के पास गई...हाथी भागता हुआ महावत के पास पहुंचा...महावत राजा के पास कि हुजूर चिड़िया का काम कर दीजिए नहीं तो मैं आपको गिरा दूंगा....राजा ने फौरन बढ़ई को बुलाया...उससे कहा कि पेड़ काट दो नहीं तो सजा दूंगा...बढ़ई पेड़ के पास पहुंचा...बढ़ई को देखते ही पेड़ बिलबिला उठा कि मुझे मत काटो…मैं चिड़िया को दाना लौटा दूंगा...*</p>
<p dir="ltr">आपको अपनी ताकत को पहचानना होगा...आपको पहचानना होगा कि भले आप छोटी सी चिड़िया की तरह होंगे, लेकिन ताकत की कड़ियां कहीं न कहीं आपसे होकर गुजरती होंगी... हर सेर को सवा सेर मिल सकता है, बशर्ते आप अपनी लड़ाई से घबराएं नहीं...आप अगर किसी काम के पीछे पड़ जाएंगे तो वो काम होकर रहेगा... *यकीन कीजिए...हर ताकत के आगे एक और ताकत होती है और अंत में सबसे ताकतवर आप होते हैं...* हिम्मत, लगन और पक्का इरादा ही हमारी ताकत की बुनियाद है..!! 💐💐🙏🏻 बड़े सपनो को पाने वाले हर व्यक्ति को *सफलता* और *असफलता* के कई पड़ावों से गुजरना पड़ता है<br>
<br>
*पहले लोग मजाक उड़ाएंगे*<br>
*फिर लोग साथ छोड़ेंगे*<br>
*फिर विरोध करेंगे*</p>
<p dir="ltr">*फिर वही लोग कहेंगे* हम तो पहले से ही जानते थे की *एक न एक दिन* तुम कुछ बड़ा करोगे!</p>
<p dir="ltr">रख *हौंसला* वो मंज़र भी आयेगा,प्यासे के पास चलकर समंदर भी आयेगा..! *थक कर* ना बैठ, ऐ मंजिल के *मुसाफ़िर*<br>
मंजिल भी मिलेगी और जीने का मजा भी आयेगा! /</p>
Moti sutharhttp://www.blogger.com/profile/15667379934155747814noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-49951623616333205862015-03-22T21:18:00.001-07:002015-03-22T21:18:04.167-07:00बहुत अच्छे विचार जरुर पढ़े<p dir="ltr">इन्सान कहता है कि पैसा आये तो हम कुछ करके<br>
दिखाये,<br>
और पैसा कहता हैं कि आप कुछ करके दिखाओ तो<br>
मैं आऊ !<br>
मैंने एक दिन भगवान से पूछा आप मेरी दुआ उसी<br>
वक्त क्यों नहीं सुनते हो जब मैं आपसे मांगता हूँ ..<br>
भगवान ने मुस्कुरा कर के कहा मैं तो आप के गुनाहों<br>
की सजा भी उस वक्त नहीं देता जब आप करते हो !<br>
किस्मत तो पहले ही लिखी जा चुकी है तो<br>
कोशिश करने से क्या मिलेगा ? क्या पता किस्मत<br>
में लिखा हो कि कोशिश से<br>
ही मिलेगा !<br>
ज़िन्दगी में कुछ खोना पड़े तो यह दो लाइन याद<br>
रखना..<br>
जो खोया है उसका ग़म नहीं लेकिन जो पाया है<br>
वह किसी<br>
से कम नहीं. जो नहीं है वह एक ख्वाब हैं और जो है<br>
वह लाजवाब है !<br>
नज़र और नसीब का कुछ ऐसा इत्तफाक हैं कि<br>
नज़र को अक्सर वही चीज़ पसंद आती हैं जो नसीब<br>
में नहीं होती और नसीब में लिखी चीज़ अक्सर नज़र<br>
नहीं आती है !<br>
बोलने से पहले लफ्ज़ आदमी के गुलाम होते हैं लेकिन,<br>
बोलने के बाद इंसान अपने लफ़्ज़ों का गुलाम बन<br>
जाता हैँ !<br>
ज्यादा बोझ लेकर चलने वाले अक्सर डूब जाते हैं<br>
फिर चाहे वह अभिमान का हो या सामान का !<br>
जिन्दगी जख्मों से भरी है वक़्त को मरहम बनाना<br>
सीख लो<br>
हारना तो है मौत के सामने फ़िलहाल जिन्दगी से<br>
जीना सीख<br>
लो !<br>
सारा जहाॅ उसीका है जो मुस्कुराना जानता है<br>
रोशनी भी उसी<br>
की है जो शमा जलाना जानता है हर जगह मंदिर<br>
मस्झीद<br>
देरासर है लेकीन इश्वर तो उसीका है जो<br>
"सर"झुकाना<br>
जानता है !<br>
अजीब तरह के लोग हैं, इस दुनिया मे,<br>
अगरबती भगवान के लिए खरीदते हैं,<br>
और खुशबू खुद की पसंद की तय करते है !!</p>
Unknownnoreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-18109164115664017722015-02-04T17:49:00.001-08:002015-02-04T17:49:07.445-08:00सेवा<p dir="ltr">वे सवेरे-सवेरे टहल कर लौटे तो कुटिया के बाहर एक<br>
दीन-हीन व्यक्ति को पड़ा पाया| उसके<br>
शरीर से मवाद बह रहा था| वह कुष्ठ रोग से<br>
पीड़ित था|<br>
उन महानुभाव ने उसे देखा| उस व्यक्ति ने<br>
धीमी आवाज में हाथ जोड़ते हुए कहा -<br>
"मैं आपके दरवाजे पर शांतिपूर्वक मरने आया हूं|"<br>
रोगी की हालत से उनका हृदय द्रवित<br>
हो उठा, पर उसे आश्रय कैसे दें! वे अकेले तो थे<br>
नहीं और भी बहुत-से भाई-बहन साथ<br>
में रहते थे|<br>
क्षणभर मन में द्वंद्व रहा| अनंतर वे कुटिया में चले गए, पर<br>
अंत अंतर्द्वंद्व ने संघर्ष का रूप धारण कर लिया| अंतर से<br>
किसी ने कहा - 'तू अपने को सेवक कहता है!<br>
इंसानियत का दावा करता है और उस दुखी बेबस<br>
आदमी को ठुकराता है!'<br>
बाहर से किसी ने जवाब दिया - "मेरे लिए तो कोई बात<br>
नहीं है, पर दूसरे लोग ऐसे<br>
रोगी को रखना पसंद नहीं करेंगे|"<br>
'ठीक है, तब तू मानव-जाति की सेवा करने<br>
का दंभ छोड़ दे|' अंतर की आवाज में<br>
खीज थी|<br>
संघर्ष और तीखा हुआ और अंत में निश्चय<br>
किया कि व्यक्ति जो सही माने उसका पालन करे<br>
दूसरों का राजी या नाराजगी की परवाह<br>
न करे| जो आशा लेकर आया है जीवन के अंतिम<br>
क्षण में शांति पाना चाहता है, उसे मायूम कैसे किया जा सकता है|<br>
इस निश्चय के बाद बराबर<br>
की कोठरी खाली कराई गई,<br>
असाध्य रोगी को उसमें रखा गया|<br>
इतना ही नहीं मानवता के उस<br>
पुजारी ने अपने हाथ से रोगी के घाव धोए,<br>
मवाद साफ किया और दवा लगाई|<br>
रोगी बराबर वहां रहा और परम शांति के साथ<br>
उसकी जीवन-लीला समाप्त<br>
हुई|<br>
वह महानुभाव थे बापू, जिनके लिए मानव सर्वोपरि था और<br>
सेवा जिनके लिए जीवन का चरम लक्ष्य<br>
थी| रोगी थे संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान<br>
परचुरे शास्त्री|</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjSTnuWEUysdyOTdY-quazkFjFCr4E_NUCU96o6Pi1dnWfFWen3JKsfKo5E_p_xOQQdKxPhc6DQfYULiHXZHVe4jRQHEzgn3tgdHHqQu7b43D2Oo7rowsPdpcY-r8S6mG4hoVY65i3PeM0/s1600/1907457_328683367341316_2454697297544033270_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjSTnuWEUysdyOTdY-quazkFjFCr4E_NUCU96o6Pi1dnWfFWen3JKsfKo5E_p_xOQQdKxPhc6DQfYULiHXZHVe4jRQHEzgn3tgdHHqQu7b43D2Oo7rowsPdpcY-r8S6mG4hoVY65i3PeM0/s640/1907457_328683367341316_2454697297544033270_n.jpg"> </a> </div>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-49745495130625825962015-02-04T17:40:00.001-08:002015-02-04T17:40:03.379-08:00क्रोध है असली चाण्डाल<p dir="ltr">एक पण्डितजी महाराज क्रोध न करने पर उपदेश दे रहे<br>
थे| कह रहे थे - "क्रोध आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन है,<br>
उससे आदमी की बुद्धि नष्ट हो जाती है| जिस<br>
आदमी में बुद्धि नहीं रहती, वह पशु बन जाता है|"<br>
लोग बड़ी श्रद्धा से पण्डितजी का उपदेश सुन रहे थे<br>
पण्डितजी ने कहा - "क्रोध चाण्डाल होता है|<br>
उससे हमेशा बचकर रहो|"<br>
भीड़ में एक ओर एक जमादार बैठा था, जिसे<br>
पण्डितजी प्राय: सड़क पर झाड़ू लगाते हुए<br>
देखा करते थे| अपना उपदेश समाप्त करके जब<br>
पण्डितजी जाने लगे तो जमादार भी हाथ जोड़कर<br>
खड़ा हो गया| लोगों की भक्ति-भावना से फूले हुए<br>
पण्डित भीड़ के बीच में से आगे आ रहे थे| इतने में पीछे<br>
से भीड़ का रेला आया और पण्डितजी गिरते-गिरते<br>
बचे! धक्के में वे जमादार से छू गए| फिर क्या था|<br>
उनका पारा चढ़ गया| बोले - "दुष्ट! तू यहां कहां से<br>
आ मरा? मैं भोजन करने जा रहा था| तूने छूकर मुझे<br>
गंदा कर दिया| अब मुझे स्नान करना पड़ेगा|"<br>
उन्होंने जमादार को जी भरकर गालियां दीं| असल<br>
में उनको बड़े जोर की भूख लगी थी और वे जल्दी-से-<br>
जल्दी यजमान के घर पहुंच जाना चाहते थे| पास<br>
ही में गंगा नदी थी लाचार होकर पण्डितजी उस<br>
ओर तेजी से लपके|<br>
तभी देखते हैं कि जमादार उनसे आगे-आगे<br>
चला जा रहा है| पण्डितजी ने कड़ककर पूछा -<br>
"क्यों रे जमादार के बच्चे! तू कहां जा रहा है?"<br>
जमादार ने जवाब दिया - "नदी में नहाने|<br>
अभी आपने कहा था न कि क्रोध चाण्डाल<br>
होता है| मैं उसे चाण्डाल को छू गया इसलिए मुझे<br>
नहाना पड़ेगा|"<br>
पण्डितजी को जैसे काठ मार गया| वे आगे एक<br>
भी शब्द न कह सके और जमादार का मुंह ताकते रह<br>
गए|</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQU9FAvKfHF48qd79qI0tFKqHx1iB2IthCqoQPCdGNNFOza3tefvTnMQwZp_0Nh_JXGT78VR9VtsbKiNcnsv-V0UvWaVx0oRBuQcBQNGqE4gNN52f44g4eWa_4DprlE41JBvFxgqHEHOs/s1600/20150205070621.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQU9FAvKfHF48qd79qI0tFKqHx1iB2IthCqoQPCdGNNFOza3tefvTnMQwZp_0Nh_JXGT78VR9VtsbKiNcnsv-V0UvWaVx0oRBuQcBQNGqE4gNN52f44g4eWa_4DprlE41JBvFxgqHEHOs/s640/20150205070621.jpg"> </a> </div>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-62112489955094553112015-02-04T17:34:00.001-08:002015-02-04T17:34:57.922-08:00हम चिल्लाते क्यों हैं गुस्से में?<p dir="ltr">एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ बैठे थे।<br>
अचानक उन्होंने सभी शिष्यों से एक सवाल पूछा;<br>
"बताओ जब दो लोग एक दूसरे पर गुस्सा करते हैं<br>
तो जोर-जोर से चिल्लाते क्यों हैं?"<br>
शिष्यों ने कुछ देर सोचा और एक ने उत्तर दिया :<br>
"हम अपनी शांति खो चुके होते हैं इसलिए चिल्लाने<br>
लगते हैं।"<br>
संत ने मुस्कुराते हुए कहा : दोनों लोग एक दूसरे के<br>
काफी करीब होते हैं तो फिर धीरे-धीरे<br>
भी तो बात कर सकते हैं। आखिर वह चिल्लाते<br>
क्यों हैं?"<br>
कुछ और शिष्यों ने भी जवाब दिया लेकिन संत<br>
संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने खुद उत्तर देना शुरू किया।<br>
वह बोले : "जब दो लोग एक दूसरे से नाराज होते हैं<br>
तो उनके दिलों में दूरियां बहुत बढ़ जाती हैं। जब<br>
दूरियां बढ़ जाएं तो आवाज को पहुंचाने के लिए<br>
उसका तेज होना जरूरी है।<br>
दूरियां जितनी ज्यादा होंगी उतनी तेज<br>
चिल्लाना पड़ेगा। दिलों की यह<br>
दूरियां ही दो गुस्साए लोगों को चिल्लाने पर<br>
मजबूर कर देती हैं। जब दो लोगों में प्रेम होता है<br>
तो वह एक दूसरे से बड़े आराम से और धीरे-धीरे बात<br>
करते हैं। प्रेम दिलों को करीब लाता है और करीब<br>
तक आवाज पहुंचाने के लिए चिल्लाने की जरूरत<br>
नहीं। जब दो लोगों में प्रेम और भी प्रगाढ़<br>
हो जाता है तो वह खुसफुसा कर भी एक दूसरे तक<br>
अपनी बात पहुंचा लेते हैं। इसके बाद प्रेम की एक<br>
अवस्था यह भी आती है कि खुसफुसाने की जरूरत<br>
भी नहीं पड़ती। एक दूसरे की आंख में देख कर ही समझ<br>
आ जाता है कि क्या कहा जा रहा है।"<br>
शिष्यों की तरफ देखते हुए संत बोले : "अब जब<br>
भी कभी बहस करें तो दिलों की दूरियों को न बढ़ने<br>
दें। शांत चित्त और धीमी आवाज में बात करें। ध्यान<br>
रखें कि कहीं दूरियां इतनी न बढ़े जाएं कि वापस<br>
आना ही मुमकिन न हो।"</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhbPtjA5sw-lMG3sjUNV0Fy9hSn5sjgcevRI4XT0be2UMI5LZMlJ1oYptGcPvIo7yYjg6s7w2BeNeZUnGVW2_tr1qwGNJ-S7gkqvpYqEmL1qXL2o6CksRuTe-xjafwEMMJhrUfy8l6F9nk/s1600/20150205070358.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhbPtjA5sw-lMG3sjUNV0Fy9hSn5sjgcevRI4XT0be2UMI5LZMlJ1oYptGcPvIo7yYjg6s7w2BeNeZUnGVW2_tr1qwGNJ-S7gkqvpYqEmL1qXL2o6CksRuTe-xjafwEMMJhrUfy8l6F9nk/s640/20150205070358.jpg"> </a> </div>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-1104857513853099142015-01-28T18:17:00.001-08:002015-01-28T18:17:49.975-08:00एक अनोखा फैसला<p dir="ltr">चीन का दार्शनिक लाओत्से अपने विचार और बुद्धि के<br>
कारण काफी प्रसिद्ध था। चीन के राजा ने<br>
लाओत्से से प्रधान न्यायाधीश बनने का अनुरोध<br>
किया और कहा- संपूर्ण विश्व में आप जैसा बुद्धिमान और<br>
न्यायप्रिय कोई नहीं है। आप न्यायाधीश<br>
बन जाएंगे तो मेरा राज्य आदर्श राज्य बन जाएगा। लाओत्से ने<br>
इनकार करते हुए कहा कि वह उस पद के लिए उपयुक्त<br>
नहीं है। लेकिन राजा नहीं माना।<br>
लाओत्से ने उसे समझाया- मुझे न्यायालय में एक दिन कार्य करते<br>
देखकर आपको अपना विचार बदलना पड़ेगा। मेरा मानना है<br>
कि संपूर्ण व्यवस्था में ही दोष है। आपके<br>
प्रति आदर भाव रखने के कारण ही मैंने आपसे<br>
सत्य नहीं कहा है। अब या तो मैं<br>
न्यायाधीश बना रहूंगा या आपके राज्य<br>
की कानून-<br>
व्यवस्था बनी रहेगी। देखें, क्या होता है।<br>
पहले ही दिन न्यायालय में एक चोर<br>
को लाया गया जिसने राज्य के सबसे<br>
धनी व्यक्ति का लगभग आधा धन चुरा लिया था।<br>
लाओत्से ने मामले को अच्छे से सुना और अपना निर्णय सुनाया-<br>
चोर और धनी व्यक्ति, दोनों को छह-छह<br>
महीने की जेल<br>
की सजा दी जाए।<br>
धनी व्यक्ति ने कहा- आप यह क्या कर रहे हैं?<br>
चोरी मेरे घर में हुई है! मेरा धन चुरा लिया गया है, फिर<br>
भी आप मुझे जेल भेजने का निर्णय कर रहे हैं।<br>
यह कैसा न्याय है?<br>
लाओत्से ने कहा- मुझे तो लगता है कि मैंने चोर के प्रति न्याय<br>
नहीं किया है। तुम्हें वास्तव में अधिक लंबा कारावास<br>
देने की आवश्यकता है। क्योंकि तुमने आवश्यकता से<br>
अधिक धन जमा करके बहुत से लोगों को संपत्ति से वंचित कर<br>
दिया है! देश में हजारों लोग भूखे मर रहे हैं लेकिन धन संग्रह<br>
करने की तुम्हारी लालसा कम<br>
नहीं होती। तुम्हारे लालच के कारण<br>
ही ऐसे चोर पैदा हो रहे हैं। अपने घर में होने<br>
वाली चोरी के लिए तुम<br>
ही जिम्मेदार हो। तुम अधिक बड़े<br>
अपराधी हो। राजा ने लाओत्से को उसी दिन<br>
हटा दिया।</p>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-52559962549742708812015-01-15T00:20:00.001-08:002015-01-15T00:20:21.693-08:00अटल विश्वास<p dir="ltr">एक बार एक गांव में सूखा पड़ा। सारे तालाब और कुएं सूख गए।<br>
तब लोगों ने एक सभा की। उस सभा में<br>
सभी ने एक स्वर में तय किया कि गांव के बाहर<br>
जो शिवजी का मंदिर है, वहां चलकर भगवान से<br>
वर्षा करने के लिए सामूहिक प्रार्थना करें। अगले दिन सुबह होते<br>
ही गांव के सभी लोग शिवालय<br>
की ओर चल दिए। बच्चे, बूढ़े, स्त्री,<br>
पुरुष सभी जोश से भरे हुए जा रहे थे। इन<br>
सभी में एक बालक ऐसा था, जो हाथ में छाता लेकर<br>
चल रहा था। सभी उसे देखकर उसका उपहास उड़ाने<br>
लगे।<br>
पंडितजी ने कहा- अरे बावले! यह<br>
छाता क्यों उठा लाया? एक ग्रामीण ने विनोद किया। एक<br>
बुजुर्ग ने भी उससे पूछा- बेटा अभी न<br>
धूप है न बारिश। फिर ये छाता क्यों उठा लाया? बालक ने उत्तर<br>
दिया- बाबा अभी तो कुछ नहीं है, किंतु हम<br>
सभी भगवान के पास प्रार्थना करने जा रहे हैं<br>
कि वर्षा कर देना। भगवान हमारी प्रार्थना सुनकर<br>
वर्षा तो करेगा ही न, तो जब हम गांव वापस लौटेंगे<br>
और वर्षा होगी, तब इसकी जरूरत<br>
पड़ेगी। बालक की बात सुनकर<br>
सभी हंस पड़े, किंतु बुजुर्ग ने गंभीर<br>
होकर कहा- बात तो तूने बहुत ही पते<br>
की कही है।<br>
भगवान पर तेरा अटूट विश्वास है। यदि वर्षा हुई<br>
भी तो तेरी प्रार्थना सुनकर<br>
ही होगी। गांव के<br>
सभी लोगों ने मंदिर में पहुंचकर<br>
प्रार्थना की और लौट पड़े किंतु आधे रास्ते में<br>
ही वर्षा जोरों से शुरू हो गई। बालक ने<br>
अपना छाता तान लिया और<br>
बाकी सभी भीगते हुए घर<br>
लौटे। भोजन-भोजन कहने और भोजन करने में बहुत अंतर है।<br>
केवल ईश्वर-ईश्वर चिल्लाने से ईश्वर<br>
की प्राप्ति नहीं हो सकती।<br>
इसके लिए हमें अनुभव, आभास और अभ्यास करना चाहिए<br>
तथा आस्था को दृढ़ बनाना चाहिए।</p>
Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-89769950771574677842015-01-04T06:27:00.001-08:002015-01-04T06:27:34.518-08:00कण-कण में भगवान<p dir="ltr">रामकृष्ण परमहंस एक कहानी सुनाते थे। एक<br>
लड़का था।<br>
उसे उसके गुरु ने बताया कि 'भगवान हर जगह है। हर<br>
जीवित प्राणी में है।’<br>
गोविंद ने गुरु के ज्ञान को शब्दश: स्वीकार कर<br>
लिया। उसने वादा किया कि वह हर जगह भगवान<br>
को देखेगा। एक बार वह गांव में भ्रमण कर रहा था।<br>
तभी हाथी पागल हो गया। उसके ऊपर बैठा महावत<br>
उसे नियंत्रित नहीं कर पा रहा था। वह चिल्ला-<br>
चिल्लाकर उसकी राह में आने वाले लोगों को हटने<br>
के लिए कह रहा था। लेकिन गोविंद अभी भी अपने<br>
गुरु की बात याद आ रही थी- 'गुरु ने हमसे कहा है<br>
कि हर वस्तु भगवान है। हाथी भी भगवान है। मैं<br>
भी भगवान हूं। एक भगवान को दूसरे से<br>
क्यों डरना चाहिए?’<br>
हाथी आया और उसने गोविंद को घायल कर दिया।<br>
बुरी तरह से घायल गोविंद को गुरु के आश्रम में<br>
लाया गया।<br>
गुरु ने पूछा- 'गोविंद! तुमने मूर्खतापूर्ण तरीके से काम<br>
क्यों किया?’<br>
जब सब लोग दौड़ रहे थे तब तुमने दौड़कर<br>
अपना बचाव क्यों नहीं किया?’<br>
गोविंद ने जवाब दिया- 'लेकिन गुरुजी! क्या आपने<br>
हमें नहीं सिखाया कि हर वस्तु में भगवान है? फिर<br>
भगवान से डरने की क्या जरूरत है?’ गु<br>
रु हंस दिए। उन्होंने जवाब दिया, 'ओह गोविंद! इसमें<br>
कोई संदेह नहीं कि हाथी भगवान है। लेकिन महावत<br>
भी भगवान है। क्या महावत-भगवान ने तुम्हें रास्ते से<br>
हटने को नहीं कहा था? तब तुमने महावत भगवान<br>
की क्यों नहीं सुनी?’<br>
युवा गोविंद को तब गुरु की बात के सही मायने<br>
समझ आए- अंदरुनी सच्चाई सभी में एक-सी है। लेकिन<br>
बाहरी तौर पर काफी अंतर है। बुद्धिमानी यह<br>
समझने में ही है कि कई प्रस्तुतियों के बीच आप उसके<br>
पीछे की सच्चाई को जान पाओ। हम भी हमारे<br>
सच्चे गुरु की तलाश में, पागल हाथी के संदेश को गलत<br>
तरीके से न समझ लें, जो अपने पागलपन की वजह से<br>
लोगों को रास्ते से हट जाने के लिए कह रहा था।<br>
यदि स्रोत से संदेश अस्पष्ट है तो हमें वहीं संदेश<br>
बुद्धिमान महावत से लेना चाहिए था, जो मौखिक<br>
रूप से पागल हाथी के रास्ते से हटने को कह रहा था।</p>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-30608063245956023912015-01-04T06:22:00.001-08:002015-01-04T06:22:46.477-08:00कार्य और बेगार<p dir="ltr">एक बूढ़ा कारपेंटर अपने काम के लिए काफी जाना जाता था , उसके बनाये लकड़ी के घर दूर -दूर<br>
तक प्रसिद्द थे . पर अब बूढा हो जाने के कारण उसने सोचा कि बाकी की ज़िन्दगी आराम से<br>
गुजारी जाए और वह अगले दिन सुबह-सुबह अपने मालिक के पास पहुंचा और बोला , ” ठेकेदार<br>
साहब , मैंने बरसों आपकी सेवा की है पर अब मैं बाकी का समय आराम से पूजा-पाठ में<br>
बिताना चाहता हूँ , कृपया मुझे काम छोड़ने की अनुमति दें . “<br>
ठेकेदार कारपेंटर को बहुत मानता था , इसलिए उसे ये सुनकर थोडा दुःख हुआ पर वो कारपेंटर<br>
को निराश नहीं करना चाहता था , उसने कहा , ” आप यहाँ के सबसे अनुभवी व्यक्ति हैं ,<br>
आपकी कमी यहाँ कोई नहीं पूरी कर पायेगा लेकिन मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि जाने से पहले एक<br>
आखिरी काम करते जाइये .”<br>
“जी , क्या काम करना है ?” , कारपेंटर ने पूछा .<br>
“मैं चाहता हूँ कि आप जाते -जाते हमारे लिए एक और लकड़ी का घर तैयार कर दीजिये .” ,<br>
ठेकेदार घर बनाने के लिए ज़रूरी पैसे देते हुए बोला .<br>
कारपेंटर इस काम के लिए तैयार हो गया . उसने अगले दिन से ही घर बनाना शुरू कर दिया ,<br>
पर ये जान कर कि ये उसका आखिरी काम है और इसके बाद उसे और कुछ<br>
नहीं करना होगा वो थोड़ा ढीला पड़ गया . पहले जहाँ वह बड़ी सावधानी से<br>
लकड़ियाँ चुनता और काटता था अब बस काम चालाऊ तरीके से ये सब करने लगा . कुछ एक<br>
हफ्तों में घर तैयार हो गया और वो ठेकेदार के पास पहुंचा , ” ठेकेदार साहब , मैंने घर तैयार<br>
कर लिया है , अब तो मैं काम छोड़ कर जा सकता हूँ ?”<br>
ठेकेदार बोला ” हाँ , आप बिलकुल जा सकते हैं लेकिन अब आपको अपने पुराने छोटे से घर में जाने<br>
की ज़रुरत नहीं है , क्योंकि इस बार जो घर आपने बनाया है वो आपकी बरसों की मेहनत<br>
का इनाम है; जाइये अपने परिवार के साथ उसमे खुशहाली से रहिये !”.!”.<br>
कारपेंटर यह सुनकर स्तब्ध रह गया , वह मन ही मन सोचने लगा , “कहाँ मैंने दूसरों के लिए एक<br>
से बढ़ कर एक घर बनाये और अपने घर को ही इतने घटिया तरीके से बना बैठा …क़ाश मैंने ये<br>
घर भी बाकी घरों की तरह ही बनाया होता .”<br>
Friends, कब आपका कौन सा काम किस तरह आपको affect कर सकता है ये<br>
बताना मुश्किल है. ये भी समझने की ज़रुरत है कि हमारा काम हमारी पहचान बना भी सकता है<br>
और बिगाड़ भी सकता है. इसलिए हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम हर एक काम<br>
अपनी best of abilities के साथ करें फिर चाहे वो हमारा आखिरी काम<br>
ही क्यों न हो!</p>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-10518058768803642712015-01-04T05:31:00.001-08:002015-01-04T05:44:45.027-08:00About me<p dir="ltr">मे मोतीलाल सुथार राजस्थान के जौधपुर जिले के ग्रामीण समाज का निवासी हु।<br>
मे वर्तमान मे 12 वी कक्षा मे कला सकांय का विद्यार्थी हु।<br>
मुझे इटरनेट चलाने व ब्लागिगं का विशेष शोक है<br>
और लोगो तक सामान्य ज्ञान का सग्रह ब्लाग द्वारा पहुचाने का प्रयास कर रहा हु</p>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-74210316034181237122014-12-27T00:13:00.001-08:002014-12-27T00:13:54.140-08:00पत्थर में भगवान<p dir="ltr">कोई कहे की की हिन्दू<br>
मूर्ति पूजा क्यों करते हैं तो उन्हें बता दें मूर्ति पूजा का रहस्य :-<br>
स्वामी विवेकानंद को एक राजा ने अपने भवन में<br>
बुलाया और बोला, “तुम हिन्दू लोग मूर्ति की पूजा करते<br>
हो! मिट्टी, पीतल, पत्थर<br>
की मूर्ति का.! पर मैं ये सब नही मानता।<br>
ये तो केवल एक पदार्थ है।”<br>
उस राजा के सिंहासन के पीछे<br>
किसी आदमी की तस्वीर<br>
लगी थी। विवेकानंद<br>
जी कि नजर उस तस्वीर पर<br>
पड़ी।<br>
विवेकानंद जी ने राजा से पूछा, “महाराज!, ये<br>
तस्वीर किसकी है?”<br>
राजा बोला, “मेरे पिताजी की।”<br>
स्वामी जी बोले, “उस तस्वीर<br>
को अपने हाथ में लीजिये।”<br>
राजा तस्वीर को हाथ मे ले लेता है।<br>
स्वामी जी राजा से : “अब आप उस<br>
तस्वीर पर थूकिए!”<br>
राजा : “ये आप क्या बोल रहे हैं<br>
स्वामी जी?<br>
स्वामी जी : “मैंने कहा उस<br>
तस्वीर पर थूकिए..!”<br>
राजा (क्रोध से) : “स्वामी जी, आप होश<br>
मे तो हैं ना? मैं ये काम नही कर सकता।”<br>
स्वामी जी बोले, “क्यों? ये<br>
तस्वीर तो केवल एक कागज का टुकड़ा है, और जिस<br>
पर कुछ रंग लगा है। इसमे ना तो जान है, ना आवाज, ना तो ये<br>
सुन सकता है, और ना ही कूछ बोल सकता है।”<br>
और स्वामी जी बोलते गए, “इसमें<br>
ना ही हड्डी है और ना प्राण। फिर<br>
भी आप इस पर कभी थूक<br>
नही सकते क्योंकि आप इसमे अपने पिता का स्वरूप<br>
देखते हो और आप इस तस्वीर का अनादर<br>
करना अपने पिता का अनादर करना ही समझते हो।”<br>
थोड़े मौन के बाद स्वामी जी आगे कहाँ,<br>
“वैसे ही, हम हिंदू भी उन पत्थर,<br>
मिट्टी, या धातु की पूजा भगवान का स्वरूप<br>
मान कर करते हैं। भगवान तो कण-कण मे है, पर एक आधार<br>
मानने के लिए और मन को एकाग्र करने के लिए हम<br>
मूर्ति पूजा करते हैं।”<br>
स्वामी जी की बात सुनकर<br>
राजा ने स्वामी जी से<br>
क्षमा माँगी।</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNrMe6RKhjQvdaKmqLeT_D0jiBQ3CYgO1HsJEyPdsf9YRrd6uXNPzt19pFb-AKn-1x_Uac3X5MGY3tT0dHHhGTbaKZfv0XJz37IhUSj2e_y5zBCH7nmkRGQ0hURFmNZWFtQHkDdN9yCUU/s1600/10492402_314178488791804_8574554934998364859_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNrMe6RKhjQvdaKmqLeT_D0jiBQ3CYgO1HsJEyPdsf9YRrd6uXNPzt19pFb-AKn-1x_Uac3X5MGY3tT0dHHhGTbaKZfv0XJz37IhUSj2e_y5zBCH7nmkRGQ0hURFmNZWFtQHkDdN9yCUU/s640/10492402_314178488791804_8574554934998364859_n.jpg"> </a> </div>Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-87809776407587564292014-12-27T00:01:00.001-08:002014-12-27T00:01:09.885-08:00कुवें का मेंढक<p dir="ltr">एक कुंवे मे एक मेंढक रहता था। एक बार समुन्द्र का एक मेंढक<br>
कुंवे मे आ पहुंचा तो कुंवे के मेंढक ने उसका हालचाल,<br>
अता पता पूछा। जब उसे ज्ञांत हुआ कि वह मेंढक समुन्द्र मे<br>
रहता हैं और समुन्द्र बहुत बड़ा होता हैं तो उसने अपने कुंवे<br>
के पानी मे एक छोटा-सा चक्कर लगाकर उस समुन्द्र<br>
के मेंढक से पूछा कि क्या समुन्द्र इतना बड़ा होता हैं?<br>
कुंवे के मेंढक ने तो कभी समुन्द्र<br>
देखा ही नहीं था। समुन्द्र के मेंढक ने<br>
उसे बताया कि इससे भी बड़ा होता हैं।<br>
कुंवे का मेंढक चक्कर बड़ा करता गया और अंत मे उसने कुंवे<br>
की दीवार के सहारे-सहारे<br>
आखिरी चक्कर लगाकर पूछा- “क्या इतना बड़ा हैं<br>
तेरा समुन्द्र ?”<br>
इस पर समुन्द्र के मेंढक ने कहा- “इससे भी बहुत<br>
बड़ा?”<br>
अब तो कुंवे के मेंढक को गुस्सा आ गया। कुंवे के अलावा उसने<br>
बाहर<br>
की दुनिया तो देखी ही नहीं थी।<br>
उसने कह दिया- “जा तू झूठ बोलता हैं। कुंवे से बड़ा कुछ<br>
होता ही नहीं हैं। समुन्द्र<br>
भी कुछ नहीं होता।”<br>
मेंढक वाली ये कथा यह ज्ञांत करती हैं<br>
कि जितना अध्धयन होगा उतना अपने अज्ञान का आभास होगा।<br>
आज जीवन मे पग-पग पर ह्मे ऐसे कुंवे के मेंढक<br>
मिल जायेंगे, जो केवल यही मानकर बैठे हैं<br>
कि जितना वे जानते हैं, उसी का नाम ज्ञान हैं, उसके<br>
इधर-उधर और बाहर कुछ भी ज्ञान<br>
नहीं हैं। लेकिन सत्य तो यह हैं कि सागर<br>
कि भांति ज्ञान की भी कोई<br>
सीमा नहीं हैं। अपने<br>
ज्ञानी होने के अज्ञानमय भ्रम<br>
को यदि तोड़ना हो तो अधिक से अधिक अध्धयन करना आवश्यक<br>
हैं जिससे आभास होगा कि अभी तो बहुत कुछ<br>
जानना और पढ़ना बाकी हैं।</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhL9QgBRbS9xhVGBThxalbY2sf36ooa2kCib6qTTwvKPpbhYg9tfrdyLT2C57J8qul66fNeQ40Oq7gAxpYhiFKg-bTAxBPDtQdK98XRxypNiWnNzbJdFxpQP_Plghy4PhzWtevArQeQW8g/s1600/10658662_314179098791743_7239048241691016766_o.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhL9QgBRbS9xhVGBThxalbY2sf36ooa2kCib6qTTwvKPpbhYg9tfrdyLT2C57J8qul66fNeQ40Oq7gAxpYhiFKg-bTAxBPDtQdK98XRxypNiWnNzbJdFxpQP_Plghy4PhzWtevArQeQW8g/s640/10658662_314179098791743_7239048241691016766_o.jpg"> </a> </div>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-36824344428859797852014-11-18T08:49:00.002-08:002014-11-18T08:49:28.866-08:00हार-जीत का फैसला <div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
बहुत समय पहले की बात है। आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच सोलह दिन तक लगातार शास्त्रार्थ चला। शास्त्रार्थ मेँ निर्णायक थीँ- मंडन मिश्र की धर्म पत्नी देवी भारती। हार-जीत का निर्णय होना बाक़ी था, इसी बीच देवी भारती को</div>
<div class="wp-caption alignleft" id="attachment_6063" style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; float: left; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14.0799999237061px; line-height: 15.3599996566772px; margin: 0.857142857rem 1.714285714rem 0.857142857rem 0px; max-width: 100%; padding: 4px; vertical-align: baseline; width: 135px;">
<img alt="शाश्त्रार्थ " class="size-full wp-image-6063" height="101" src="http://www.achhikhabar.com/wp-content/uploads/2014/11/%E0%A4%86%E0%A4%A6%E0%A4%BF-%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%A8-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-Adi-Shankarachary.jpg?3dd9c3" style="border-bottom-left-radius: 3px; border-bottom-right-radius: 3px; border-top-left-radius: 3px; border-top-right-radius: 3px; border: 0px; box-shadow: rgba(0, 0, 0, 0.2) 0px 1px 4px; font-size: 14.0799999237061px; height: auto; margin: 0px; max-width: 100%; padding: 0px; vertical-align: baseline;" width="125" /><div class="wp-caption-text" style="border: 0px; color: #757575; font-size: 0.857142857rem; font-style: italic; line-height: 2; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
शाश्त्रार्थ</div>
</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
किसी आवश्यक कार्य से कुछ समय के लिये बाहर जाना पड़ गया।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
लेकिन जाने से पहले देवी भारती नेँ दोनोँ ही विद्वानोँ के गले मेँ एक-एक फूल माला डालते हुए कहा, येँ दोनो मालाएं मेरी अनुपस्थिति मेँ आपके हार और जीत का फैसला करेँगी। यह कहकर देवी भारती वहाँ से चली गईँ। शास्त्रार्थ की प्रकिया आगे चलती रही।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
कुछ देर पश्चात् देवी भारती अपना कार्य पुरा करके लौट आईँ। उन्होँने अपनी निर्णायक नजरोँ से शंकराचार्य और मंडन मिश्र को बारी- बारी से देखा और अपना निर्णय सुना दिया। उनके फैसले के अनुसार आदि शंकराचार्य विजयी घोषित किये गये और उनके पति मंडन मिश्र की पराजय हुई थी।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
सभी दर्शक हैरान हो गये कि बिना किसी आधार के इस विदुषी ने अपने पति को ही पराजित करार दे दिया। एक विद्वान नेँ देवी भारती से नम्रतापूर्वक जिज्ञासा की- हे ! देवी आप तो शास्त्रार्थ के मध्य ही चली गई थीँ फिर वापस लौटते ही आपनेँ ऐसा फैसला कैसे दे दिया ?</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
देवी भारती ने मुस्कुराकर जवाब दिया- जब भी कोई विद्वान शास्त्रार्थ मेँ पराजित होने लगता है, और उसे जब हार की झलक दिखने लगती है तो इस वजह से वह क्रुध्द हो उठता है और मेरे पति के गले की माला उनके क्रोध की ताप से सूख चुकी है जबकि शंकराचार्य जी की माला के फूल अभी भी पहले की भांति ताजे हैँ। इससे ज्ञात होता है कि शंकराचार्य की विजय हुई है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
विदुषी देवी भारती का फैसला सुनकर सभी दंग रह गये, सबने उनकी काफी प्रशंसा की।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
दोस्तोँ क्रोध मनुष्य की वह अवस्था है जो जीत के नजदीक पहुँचकर हार का नया रास्ता खोल देता है। क्रोध न सिर्फ हार का दरवाजा खोलता है बल्कि रिश्तोँ मेँ दरार का कारण भी बनता है। इसलिये कभी भी अपने क्रोध के ताप से अपने फूल रूपी गुणों को मुरझाने मत दीजिये।</div>
Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-42357020764664755082014-11-15T23:10:00.002-08:002014-11-15T23:10:43.118-08:00कोयले का टुकड़ा<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
अमित एक मध्यम वर्गीय परिवार का लड़का था। वह बचपन से ही बड़ा आज्ञाकारी और मेहनती छात्र था। लेकिन जब से उसने कॉलेज में दाखिला लिया था उसका व्यवहार बदलने लगा था। अब ना तो वो पहले की तरह मेहनत करता और ना <img alt="Inspirational Hindi Story" class="alignleft size-full wp-image-6048" height="97" src="http://www.achhikhabar.com/wp-content/uploads/2014/11/Angithi-%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A0%E0%A5%801.jpg?3dd9c3" style="border-bottom-left-radius: 3px; border-bottom-right-radius: 3px; border-top-left-radius: 3px; border-top-right-radius: 3px; border: 0px; box-shadow: rgba(0, 0, 0, 0.2) 0px 1px 4px; float: left; height: auto; margin: 0.857142857rem 1.714285714rem 0.857142857rem 0px; max-width: 100%; padding: 0px; vertical-align: baseline;" width="129" />ही अपने माँ-बाप की सुनता। यहाँ तक की वो घर वालों से झूठ बोल कर पैसे भी लेने लगा था। उसका बदला हुआ आचरण सभी के लिए चिंता का विषय था। जब इसकी वजह जानने की कोशिश की गयी तो पता चला कि अमित बुरी संगती में पड़ गया है। कॉलेज में उसके कुछ ऐसे मित्र बन गए हैं जो फिजूलखर्ची करने , सिनेमा देखने और धूम्र-पान करने के आदि हैं।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
पता चलते ही सभी ने अमित को ऐसी दोस्ती छोड़ पढाई- लिखाई पर ध्यान देने को कहा ; पर अमित का इन बातों से कोई असर नहीं पड़ता , उसका बस एक ही जवाब होता , ” मुझे अच्छे-बुरे की समझ है , मैं भले ही ऐसे लड़को के साथ रहता हूँ पर मुझपर उनका कोई असर नहीं होता … “</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
दिन ऐसे ही बीतते गए और धीरे-धीरे परीक्षा के दिन आ गए , अमित ने परीक्षा से ठीक पहले कुछ मेहनत की पर वो पर्याप्त नहीं थी , वह एक विषय में फेल हो गया । हमेशा अच्छे नम्बरों से पास होने वाले अमित के लिए ये किसी जोरदार झटके से कम नहीं था। वह बिलकुल टूट सा गया , अब ना तो वह घर से निकलता और ना ही किसी से बात करता। बस दिन-रात अपने कमरे में पड़े कुछ सोचता रहता। उसकी यह स्थिति देख परिवारजन और भी चिंता में पड़ गए। सभी ने उसे पिछला रिजल्ट भूल आगे से मेहनत करने की सलाह दी पर अमित को तो मानो सांप सूंघ चुका था , फेल होने के दुःख से वो उबर नही पा रहा था।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
जब ये बात अमित के पिछले स्कूल के प्रिंसिपल को पता चली तो उन्हें यकीन नहीं हुआ, अमित उनके प्रिय छात्रों में से एक था और उसकी यह स्थिति जान उन्हें बहुत दुःख हुआ , उन्होंने निष्चय किया को वो अमित को इस स्थिति से ज़रूर निकालेंगे।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
इसी प्रयोजन से उन्होंने एक दिन अमित को अपने घर बुलाया।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
प्रिंसिपल साहब बाहर बैठे अंगीठी ताप रहे थे। अमित उनके बगल में बैठ गया। अमित बिलकुल चुप था , और प्रिंसिपल साहब भी कुछ नहीं बोल रहे थे। दस -पंद्रह मिनट ऐसे ही बीत गए पर किसी ने एक शब्द नहीं कहा। फिर अचानक प्रिंसिपल साहब उठे और चिमटे से कोयले के एक धधकते टुकड़े को निकाल मिटटी में डाल दिया , वह टुकड़ा कुछ देर तो गर्मी देता रहा पर अंततः ठंडा पड़ बुझ गया।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
यह देख अमित कुछ उत्सुक हुआ और बोला , ” प्रिंसिपल साहब , आपने उस टुकड़े को मिटटी में क्यों डाल दिया , ऐसे तो वो बेकार हो गया , अगर आप उसे अंगीठी में ही रहने देते तो अन्य टुकड़ों की तरह वो भी गर्मी देने के काम आता !”</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
प्रिंसिपल साहब मुस्कुराये और बोले , ” बेटा , कुछ देर अंगीठी में बाहर रहने से वो टुकड़ा बेकार नहीं हुआ , लो मैं उसे दुबारा अंगीठी में डाल देता हूँ….” और ऐसा कहते हुए उन्होंने टुकड़ा अंगीठी में डाल दिया।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
अंगीठी में जाते ही वह टुकड़ा वापस धधक कर जलने लगा और पुनः गर्मी प्रदान करने लगा।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
“कुछ समझे अमित। “, प्रिंसिपल साहब बोले , ” तुम उस कोयले के टुकड़े के समान ही तो हो, पहले जब तुम अच्छी संगती में रहते थे , मेहनत करते थे , माता-पिता का कहना मानते थे तो अच्छे नंबरों से पास होते थे , पर जैस वो टुकड़ा कुछ देर के लिए मिटटी में चला गया और बुझ गया , तुम भी गलत संगती में पड़ गए और परिणामस्वरूप फेल हो गए , पर यहाँ ज़रूरी बात ये है कि एक बार फेल होने से तुम्हारे अंदर के वो सारे गुण समाप्त नहीं हो गए… जैसे कोयले का वो टुकड़ा कुछ देर मिटटी में पड़े होने के बावजूब बेकार नहीं हुआ और अंगीठी में वापस डालने पर धधक कर जल उठा , ठीक उसी तरह तुम भी वापस अच्छी संगती में जाकर , मेहनत कर एक बार फिर मेधावी छात्रों की श्रेणी में आ सकते हो … याद रखो, मनुष्य ईश्वर की बनायीं सर्वश्रेस्ठ कृति है उसके अंदर बड़ी से बड़ी हार को भी जीत में बदलने की ताकत है , उस ताकत को पहचानो , उसकी दी हुई असीम शक्तियों का प्रयोग करो और इस जीवन को सार्थक बनाओ। “</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
अमित समझ चुका था कि उसे क्या करना है , वह चुप-चाप उठा , प्रिंसिपल साहब के चरण स्पर्श किये और निकल पड़ा अपना भविष्य बनाने ….</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-36195629949835064752014-11-15T23:04:00.004-08:002014-11-15T23:04:48.277-08:00लोकतांत्रिक समाजवाद के प्रर्वतक जवाहरलाल नेहरु<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
उच्चकोटी के विचारक तथा लोकतांत्रिक समाजवाद के समर्थक<span style="border: 0px; color: #ff6600; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"> जवाहरलाल नेहरु</span> महान मानवतावादी थे। बच्चों के प्रिय चाचा नेहरु अपने देश में ही नही वरन सम्पूर्ण विश्व में सम्मानित और प्रशंशनीय राजनेता थे। मानव-मात्र का उत्थान,</div>
<div class="wp-caption alignleft" id="attachment_2261" style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; float: left; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14.0799999237061px; line-height: 15.3599996566772px; margin: 0.857142857rem 1.714285714rem 0.857142857rem 0px; max-width: 100%; padding: 4px; vertical-align: baseline; width: 160px;">
<img alt="Pundit Jawaharlal Children's Day Essay in Hindi" class="size-thumbnail wp-image-2261" height="150" src="http://www.achhikhabar.com/wp-content/uploads/2012/08/Jawaharlal-Nehru-150x150.jpg?3dd9c3" style="border-bottom-left-radius: 3px; border-bottom-right-radius: 3px; border-top-left-radius: 3px; border-top-right-radius: 3px; border: 0px; box-shadow: rgba(0, 0, 0, 0.2) 0px 1px 4px; font-size: 14.0799999237061px; height: auto; margin: 0px; max-width: 100%; padding: 0px; vertical-align: baseline;" width="150" /><div class="wp-caption-text" style="border: 0px; color: #757575; font-size: 0.857142857rem; font-style: italic; line-height: 2; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
चाचा नेहरू</div>
</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
कल्याण तथा उनका सुख एवं आंनद नेहरु जी के चिंतन की धुरी थे। उनका मानवीय दृष्टीकोंण ही था कि, वे गुलामी को मनुष्य पर होने वाला सबसे बङा अत्याचार मानते थे। स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु संघर्ष करने वाले देश उन्हे अपना सच्चा हमदर्द और मसीहा मानते थे। मानवीय गरिमा को उच्चतम शिखर तक पहुँचाने वाले नेहरु जी के बारे में मलेशिया के प्रधानमंत्री <span style="border: 0px; color: green; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">टुंकू अब्दुल्ल रहमान</span> का कहना था कि, “नेहरु मेरी प्रेरणा के स्रोत थे।”</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
नेहरु जी को भारत से अगाध प्रेम था। उन्होने लिखा है कि, “हिन्दुस्तान मेरे खून में समाया हुआ है और उसमें बहुत कुछ ऐसी बातें हैं जो मुझे स्वभावतः प्रेरित करती हैं।” उन्होने अपनी पुस्तक <span style="border: 0px; color: green; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">भारत एक खोज</span> में लिखा है, “किसी भी पराधीन देश के लिये राष्ट्रीय स्वतंत्रता प्रथम तथा प्रधान आकांक्षा होनी चाहिये।”</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
नेहरु जी समाजवादी समाज के प्रबल समर्थक थे, वे लोकतंत्र को एक शासन प्रणाली ही नही अपितु जीवन पद्धति मानते थे। राष्ट्रीय आनंदोलन के दौरान ही नेहरु जी ने बार-बार कहा था कि स्वतंत्र भारत लोकतांत्रिक भारत होगा। वे संसदीय लोकतंत्र को अधिक महत्व देते थे तथा आर्थिक एवं सामाजिक लोकतंत्र में विश्वास रखते थे। नेहरु जी के अनुसार, “शासन के अन्य प्रकारों की तुलना में लोकतंत्र जनता से अधिक उच्च प्रतिमानों की अपेक्षा करता है। यदि जनता उस मापदण्ड तक नही पहुँच पाई तो लोकतांत्रिक यन्त्र असफल हो जायेगा।”</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
नेहरु जी भारतीय समस्याओं का भारतीय समाधान चाहते थे। वास्तव में नेहरु जी लोकतांत्रिक समाजवाद के प्रवर्तक थे। गुटनिरपेक्षता के जनक जवाहरलाल नेहरु जी ने कहा था कि, “यह भारत के स्वाभीमान के विरुद्ध होगा कि भारत इनमें से किसी भी गुट का अनुयायी बने।” अतः भारत ने विश्व राजनीति के क्षेत्र में <span style="border: 0px; color: green; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">गुटनिरपेक्षता</span> का मार्ग प्रतिपादित किया । नेहरु जी ने विश्व को गुट निरपेक्षता के द्वारा तनाव शैथिल्य वातावरण प्रदान किया तथा साथ ही निर्बल देशों को बल भी प्रदान किया।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
एक राजनीतिक विचारक के रूप में श्री नेहरु जी के <span style="border: 0px; color: green; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">तीन मुख्य आदर्श</span> थे- लेकतंत्र, समाजवाद और धर्म-निरपेक्षता। संविधान सभा के महत्वपूर्ण सदस्य के नाते नेहरु जी ने इस बात का आग्रह किया था कि, भारतीय संविधान द्वारा इस देश में धर्म-निरपेक्ष सरकार की स्थापना की जाये। परिणाम स्वरूप 42वें संशोधन के बाद भारतीय संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है। यहाँ सभी धर्मों को अपने विचारों तथा प्रचार-प्रसार का अधिकार है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
<span style="border: 0px; color: green; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">पंचशील</span> के प्रतिपादक नेहरु जी के अंर्तराष्ट्रीय चिन्तन और मानवतावादी दृष्टीकोंण का सर्वाधिक उज्जवल पक्ष ये था कि वे विश्वशान्ति में विश्वास रखते थे। नेहरु जी का मानना था कि युद्ध का विचार जंगली और असभ्यता का विचार है। एक बार उन्होने कहा था कि यदि हमने युद्ध को समाप्त नही किया तो युद्ध हमें समाप्त कर देगा।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
<span style="border: 0px; color: green; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">श्रीमति सुचेता कृपलानी</span> ने नेहरु जी के बारे में कहा था कि, “नेहरु जी का जीवन बहुमुखी रहा है। वह एक कुशल राजनेता, अनुभवी राजनयिक, अथक योद्धा और प्रभावशाली लेखक थे। सबसे अधिक वे मानवता के पुजारी थे।”</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
मिस्र के <span style="border: 0px; color: green; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">राष्ट्रपति नासीर</span> ने कहा था कि, “नेहरु जी की जिंदगी एक मशाल की तरह थी, जिससे हिन्दुस्तान, एशिया और दुनिया को रौशनी मिलती थी।”</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
आधुनिक भारत के महान राजनितिज्ञों में श्री नेहरु जी का नाम शिखर पर है। उनके द्वारा लिखी पुस्तकों, ‘भारत एक खोज’, ‘मेरी कहानी’ तथा ‘विश्व इतिहास की झलक’ उन्हे महान लेखक और चिंतक परिलाक्षित करती हैं।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: 'Open Sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.714285714; margin-bottom: 1.714285714rem; padding: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
मानवतावादी तथा लोकतांत्रिक समाजवाद के प्रर्वतक जवाहरलाल <span style="border: 0px; color: green; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">नेहरु जी की 125वीं जयंती</span> पर हम उन्हें शत् शत् नमन करते हैं।</div>
Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-76154337360353062562014-11-05T06:32:00.001-08:002014-11-09T03:27:47.949-08:00The easiest way video calling on Facebook फेसबुक पर वीडियो कॉलिंग का आसान तरीकाक्या आप जानते हैं कि फेसबुक पर
<br>भी वीडियो कॉलिंग की जा सकती है।
<br>हालांकि इसके लिए दोनों तरफ वैबकैम
<br>और माइक्रोफोन लगे होने चाहिए
<br>ताकि आप एक दूसरे को देख सुन सकें।
<br>इसके अलावा वाइबर, स्काइप जैसी अन्य
<br>वेबसाइटें भी हैं जहां यह सुविधा उपलब्ध
<br>पहले से ही उपलब्ध है।
<br>फेसबुक वीडियो कॉल स्टेप्स
<br>-चैट विंडो ओपन करें।
<br>-राइट विंडो पर कैमरा आइकन क्लिक
<br>करें।
<br>-राइट टॉप पर मैसेज आएगा "स्टार्ट
<br>वीडियो कॉल विद ..."
<br>-अगर आपका दोस्त अवेलेबल नहीं है
<br>तो मैसेज होगा "... इज
<br>करंटली अनअवेलेबल फॉर
<br>वीडियो कॉलिंग"।
<br>-वीडियो कॉल शुरू करें।
<br>-कॉल खत्म होने के बाद विंडो बंद करें।
<br>-चैट और वीडियो कॉल दोनों एक साथ
<br>किए जा सकते हैं।
<br>-एक से ज्यादा लोगों के साथ ग्रुप
<br>वीडियो कॉलिंग की जा सकती है।
<br>-वीडियो कॉलिंग अनइंस्टॉल करने के
<br>लिए विंडो बंद कर दें।Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-76721803107776947622014-11-03T07:55:00.001-08:002014-11-09T03:32:06.276-08:00Be the biggest qualities of character चरित्रवान होना सबसे बडा गुणनोबेल पुरस्कार प्राप्त सर सीवी रमन भौतिक
<br>विज्ञान के प्रख्यात वैज्ञानिक थे। उन्हें अपने
<br>विभाग के लिए एक योग्य वैज्ञानिक
<br>की आवश्यकता थी। उन्होंने अखबारों में
<br>विज्ञापन प्रकाशित करवाया, जिसे पढ़कर
<br>उनके पास कई आवेदन आए। सर सीवी रमन ने उनमें
<br>से कुछ का चयन किया और उन्हें साक्षात्कार के
<br>लिए आमंत्रित किया।
<br>साक्षात्कार के लिए आए लोगों में एक नवयुवक
<br>था, जिसे रमन ने अस्वीकार कर दिया था।
<br>थोड़ी देर बाद जब साक्षात्कार समाप्त
<br>हो गया तो रमन ने गौर किया कि वह नवयुवक
<br>अब भी उनके कार्यालय के आसपास घूम रहा है। वे
<br>तत्काल उसके पास पहुंचे और नाराजगी जताते हुए
<br>बोले, जब मैंने तुम्हें अस्वीकार कर दिया है तब
<br>तुम यहां क्यों घूम रहे हो? यहां तुम्हें
<br>नौकरी नहीं मिलने वाली। जाओ, घर चले जाओ।
<br>तब उस युवक ने विनम्रता से कहा, 'सर, आप
<br>नाराज न हों। मुझे यहां आने-जाने
<br>का जो किराया दिया गया, वह भूल से कुछ
<br>अधिक है।
<br>इसलिए मैं यह अतिरिक्त राशि वापस लौटाने के
<br>लिए कार्यालय के लिपिक को खोज रहा हूं।' सर
<br>रमन उसकी बात सुनकर विस्मित हुए। फिर कुछ
<br>सोचकर बोले मैंने तुम्हारा चयन कर लिया है, तुम
<br>चरित्रवान हो। भौतिकी के ज्ञान में तुम कुछ
<br>कमजोर हो, जिसे मैं तुम्हें पढ़ाकर दूर कर
<br>सकता हूं, किंतु चरित्रवान व्यक्ति पाना कठिन
<br>है।
<br>वस्तुत: किसी भी नौकरी के लिए
<br>सर्वोपरि पात्रता ईमानदारी होती है
<br>जो कर्मनिष्ठा व समर्पण को जन्म देती है और
<br>यही संबंधित संस्थान की प्रगति के लिए
<br>जरूरी है। ज्ञान की कमी को अध्ययन से दूर
<br>किया जा सकता है किंतु चारित्रिक
<br>दुर्बलता संस्थान को हर प्रकार से
<br>हानि पहुंचाती है।Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-69417147360665214562014-11-02T08:14:00.001-08:002014-11-09T03:25:31.038-08:00रेलवे, ssc 10+2, ssc cgl, Ib, पुलिस, पुलिस si आने वाली सभी परिक्षाओं के लिए अति महत्वपूर्ण(1). "गोडवाना" नामक कोयला क्षेत्र स्थित
<br />
है।
<br />
उत्तर → [ मध्यप्रदेश ]
<br />
(2). शहतुत एक प्रकार का
<br />
उत्तर → [ ऊन हैं ]
<br />
(3). "दमन गंगा" किस प्राचीन नदी का नाम
<br />
हैं।
<br />
उत्तर → [ ताप्ती नदी का ]
<br />
(4). 'डबल जीरो' किस फसल की उन्नत किस्म
<br />
हैं।
<br />
उत्तर → [ सरसों ]
<br />
(5). मेसेटा एक विस्तृत पठार है, जो स्थित है।
<br />
उत्तर → [ फ़्रांस में ]
<br />
(6). उपन्यास 'पिंजर' के रचियता कौन हैं।
<br />
उत्तर → [ अमृता प्रीतम ]
<br />
(7). 'सागादावा' किस धर्म का प्रमुख पर्व हैं।
<br />
उत्तर → [ बौद्ध ]
<br />
(8). कौन-सी गैस फूलो का रंग उडा देती हैं।
<br />
उत्तर → [ क्लोरिन ]
<br />
(9). लूनी नदी किस राज्य में प्रवाहित
<br />
होती हैं।
<br />
उत्तर → [ राजस्थान ]
<br />
(10). भारत में ऊर्जा उत्पादन का प्रमुख
<br />
स्त्रोत हैं।
<br />
उत्तर → [ कोयला ]
<br />
(11). भारत का एकमात्र सक्रिय
<br />
ज्वालामुखी हैं।
<br />
उत्तर → [ बेरन आइलेण्ड ]
<br />
(12). कर्नाटक का अर्थ हैं।
<br />
उत्तर → [ लहरदार भूमि ]
<br />
(13). विश्व के किस महाद्वीप को 'मानव घर'
<br />
कहा जाता हैं।
<br />
उत्तर → [ एशिया ]
<br />
(14). महाबलेश्वर किस राज्य में स्थित हैं।
<br />
उत्तर → [ महाराष्ट्र ]
<br />
(15). कोयला किस चट्टान में पाया जाता हैं।
<br />
उत्तर → [ अवसादी ]
<br />
(16). द्रोणाचार्य पुरस्कार किस क्षेत्र में
<br />
प्रदान किया जाता है। उत्तर→[ खेल
<br />
प्रशिक्षण में ]
<br />
(17). नागार्जुन सागर परियोजना किस
<br />
नदी पर बनी है।
<br />
उत्तर →[ कृष्णा नदी पर ]
<br />
(18). ब्रिटेन की मुद्रा का नाम है।
<br />
उत्तर → [ पौण्ड ]
<br />
(19). मनुष्य के शरीर में पित्त रस (Bile)
<br />
कहाँ पैदा होता है।
<br />
उत्तर →[ यकृत में ]
<br />
(20). पनामा नहर किन
<br />
दो महासागरो को जोडती है।
<br />
उत्तर →[ प्रशान्त महासागर और अटलांटिक ]
<br />
(21). मान बुकर पुरस्कार किस क्षेत्र में
<br />
दिया जाता हैं।
<br />
उत्तर →[ साहित्य के क्षेत्र में ]
<br />
(22). 'Little corporal' के नाम से कोन
<br />
प्रसिद्ध था
<br />
उत्तर →[ नेपोलियन बोनापार्ट ]
<br />
(23). तोरा - बोरा की पहाड़ियाँ कहाँ स्थित
<br />
है।
<br />
उत्तर →[ अफगानिस्तान में ]
<br />
(24). महावीर को प्राप्त ईश्वरीय ज्ञान
<br />
को कहते है।
<br />
उत्तर →[ कैवल्य]
<br />
(25). भारत का सबसे बड़ा नियोक्ता है।
<br />
उत्तर →[ रेलवे ]
<br />
(26). Mouse,key-board ,Joy-stick,
<br />
Light pen है।
<br />
उत्तर →[ Input device ]
<br />
(27). भारत ओर बांग्लादेश के बिच चलने
<br />
वाली रेल है।
<br />
उत्तर →[ मैत्री एक्सप्रेस ]
<br />
(28). रोवर्स कप किस खेल से सम्बंधित है।
<br />
उत्तर →[ फुटबाल खेल से ]
<br />
(29). 'विश्व की रोटी की टोकरी' किस
<br />
क्षेत्र को कहा जाता है।
<br />
उत्तर →[ प्रेयरी क्षेत्र को ]
<br />
(30). जहाँगीर के बचपन का नाम है।
<br />
उत्तर →[ सलीम ]
<br />
(31). पदमश्री से सम्मानित होने
<br />
वाली पहली भारतीय अभिनेत्री थी उत्तर →
<br />
[ नरगिस ]
<br />
(32). चन्दन की लकड़ी के लिए भारत का कोन
<br />
सा राज्य प्रसिद्ध है।
<br />
उत्तर →[ कर्नाटक ]
<br />
(33). पचास रूपये के नोट पर किसके हस्ताक्षर
<br />
होते है।
<br />
उत्तर →[ गवर्नर रिजर्व बैंक ]
<br />
(33). Y2k समस्या सम्बंधित है।
<br />
उत्तर →[ कम्प्यूटर से ]
<br />
(34). कम्प्यूटर में joy stick का प्रयोग
<br />
होता है।
<br />
उत्तर →[ गेम खेलने मे ]
<br />
(35). भारत में प्रथम कपड़ा मिल
<br />
कहां स्थापित की गई - बम्बईUnknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-55279628265060923992014-11-01T09:22:00.001-07:002014-11-09T03:32:06.270-08:00The true story of our life हमारे जीवन की सत्य कहानी1. माँ से बढकर कोई महान नही है।
<br>2. पिता से बढकर कोई मार्गदर्शक नही है।
<br>3. गुरु से बढकर कोई ज्ञानी नही है।
<br>4.भाई से बढकर कोई भरोसेमंद नही है।
<br>5. बहन से बढकर कोई रिश्ता नही है।
<br>6. पति या पत्नि से बढकर कोई जीवन
<br>साथी नही है।
<br>7. पुत्र से बढकर कोई सहारा नही है।
<br>8. पुत्री से बढकर कोई सेवा करने
<br>वाला नही है।
<br>9. मित्रता से बढकर कोई प्रेम नही है।
<br>बस एक ही वजह है इन रिश्तो के बिगडने की, और
<br>वो है-
<br>''व्यक्तिगत स्वार्थ''।Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-52109119566522934352014-10-29T10:02:00.001-07:002014-11-09T03:25:31.033-08:00GK QUIZ HINDI.1. भारत में "शिक्षा" को किस सूची में शामिल
<br>किया गया है ?
<br>(1) संघ सूची
<br>(2) राज्य सूची
<br>(3) समवर्ती सूची
<br>(4) यू. जी. सी. सूची
<br>Answer – समवर्ती सूची
<br>2. फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान किस राज्य
<br>में है ?
<br>(1) जम्मू कश्मीर
<br>(2) हिमाचल प्रदेश
<br>(3) उत्तराखंड
<br>(4) केरल
<br>Answer – उत्तराखंड
<br>3. ओलंपिक खेल 2016 का आयोजन किस देश
<br>में किया जायेगा ?
<br>(1) चीन
<br>(2) ऑस्ट्रेलिया
<br>(3) ब्राजील
<br>(4) भारत
<br>Answer – ब्राजील
<br>4. भारत में कर्क रेखा कितने राज्यों से होकर
<br>गुजरती है ?
<br>(1) 5
<br>(2) 6
<br>(3) 7
<br>(4) 8
<br>Answer – 8
<br>5. राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम् के रचयिता कौन
<br>थे ?
<br>(1) रवीन्द्रनाथ टैगोर
<br>(2) बंकिम चन्द्र चटर्जी
<br>(3) शरत चंद्र चटर्जी
<br>(4) सरोजिनी नायडू
<br>Answer – बंकिम चन्द्र चटर्जी
<br>6. किस देश का राष्ट्रीय खेल 'शतरंज' है ?
<br>(1) फ्रांस
<br>(2) रूस
<br>(3) सूडान
<br>(4) यू एस ए
<br>Answer – रूस
<br>7. मेंढक के ह्रदय में कितने कक्ष होते है ?
<br>(1) 1
<br>(2) 2
<br>(3) 3
<br>(4) 4
<br>Answer – 3
<br>Q8. "जिन्ना हाउस" किस शहर में स्थित है ?
<br>(1) दिल्ली
<br>(2) लखनऊ
<br>(3) हैदराबाद
<br>(4) मुम्बई
<br>Ans. (4) मुम्बईUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-33515467902435902712014-10-29T09:59:00.001-07:002014-11-09T03:25:31.026-08:00Indian ministerदोस्तों आजकल Exam में मंत्रियों के
<br>नाम पूंछे जाते
<br>है ...
<br>अच्छा रहेगा अगर आप नोट कर लें.
<br>और याद कर
<br>लें...
<br>१- नरेंद्र मोदी -
<br>प्रधानमंत्री भारत सरकार ( सांसद
<br>वाराणसी उत्तर प्रदेश )
<br>२- राजनाथ सिंह - गृहमंत्री (सांसद
<br>लखनऊ उत्तर
<br>प्रदेश )
<br>३- सुषमा स्वराज - विदेशमंत्री
<br>४- अरुणजेटली - वित्त मंत्री
<br>५- वेंकैया नायडू -
<br>शहरी विकाशमंत्री
<br>६- नितिन गडकरी - भूतल
<br>परिवहन और शिपिंग मंत्री
<br>७- सदानंद गौड़ा - रेल मंत्री
<br>८- उमाभारती - जल संसाधन एवं
<br>गंगा अभियान
<br>मंत्री ( सांसद झाँसी उत्तर प्रदेश )
<br>९- नजमा हेपतुल्ला - अल्पसंख्यक
<br>कल्याण मंत्री
<br>१० - प्रकश जावड़ेकर - संसदीय
<br>कार्य राज्य मंत्री
<br>११- रामविलास पासवान -
<br>उपभोक्ता मामलों के
<br>मंत्री (लोकजनशक्ति पार्टी )
<br>१२- कलराज मिश्र - उद्योग
<br>मंत्री ( सांसद
<br>देवरिया उत्तर प्रदेश )
<br>१३- मेनका गांधी - महिला एवं
<br>बालविकाश
<br>मंत्री ( सांसद पीलीभीत उत्तर
<br>प्रदेश )
<br>१४- अनंत कुमार - कैबिनेट मंत्री
<br>१५- रविशंकर प्रसाद - कानून
<br>मंत्रीUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-22687681950494562382014-10-29T09:49:00.001-07:002014-11-09T03:29:47.560-08:00Countries & Curriences***Countries & Curriences***
<br>
<br>U. K. - Pound Sterling
<br>U. S. A - Dollar
<br>Norway - Krone
<br>Vatican City State - Lira
<br>Iraq - Iraqi Dinar
<br>Isreal - Shekel
<br>Japan - Yen
<br>Kazakhstan - Tenge
<br>Kuwait - Kuwaiti Dinar
<br>Malaysia - Ringgit
<br>Mexico - Peso
<br>Myanmar - Kyat
<br>Russia - Rouble
<br>Saudi Arabia - Riyal
<br>Vietnam - Dong
<br>Algeria - Algeria Dinar
<br>Angola - New Kwanza
<br>Armenia - Dram
<br>Azerbaijan - Manat
<br>Austria - Schilling
<br>Bahrain - Dinar
<br>Ghana - Cedi
<br>Indonesia - RupiahUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-46236685372233245562014-10-18T07:13:00.001-07:002014-11-09T03:32:06.264-08:00I am Viewing gone bad बुरा जो देखन मै चलापुराने जमाने की बात है। एक गुरुकुल के आचार्य
<br>अपने शिष्य की सेवा भावना से बहुत प्रभावित
<br>हुए। विद्या पूरी होने के बाद शिष्य
<br>को विदा करते समय उन्होंने आशीर्वाद के रूप में
<br>उसे एक ऐसा दिव्य दर्पण भेंट किया, जिसमें
<br>व्यक्ति के मन के भाव को दर्शाने
<br>की क्षमता थी। शिष्य उस दिव्य दर्पण
<br>को पाकर प्रसन्न हो उठा। उसने परीक्षा लेने
<br>की जल्दबाजी में दर्पण का मुंह सबसे पहले
<br>गुरुजी के सामने कर दिया। वह यह देखकर
<br>आश्चर्यचकित हो गया कि गुरुजी के हृदय में मोह,
<br>अहंकार, क्रोध आदि दुर्गुण परिलक्षित हो रहे
<br>थे। इससे उसे बड़ा दुख हुआ। वह तो अपने
<br>गुरुजी को समस्त दुर्गुणों से रहित सत्पुरुष
<br>समझता था।
<br>दर्पण लेकर वह गुरुकूल से रवाना हो गया। उसने
<br>अपने कई मित्रों तथा अन्य परिचितों के सामने
<br>दर्पण रखकर परीक्षा ली। सब के हृदय में कोई न
<br>कोई दुर्गुण अवश्य दिखाई दिया। और तो और
<br>अपने माता व पिता की भी वह दर्पण से
<br>परीक्षा करने से नहीं चूका। उनके हृदय में
<br>भी कोई न कोई दुर्गुण देखा, तो वह हतप्रभ
<br>हो उठा। एक दिन वह दर्पण लेकर फिर गुरुकुल
<br>पहुंचा। उसने गुरुजी से विनम्रतापूर्वक कहा,
<br>'गुरुदेव, मैंने आपके दिए दर्पण की मदद से
<br>देखा कि सबके दिलों में नाना प्रकार के दोष हैं।'
<br>तब गुरु जी ने दर्पण का रुख शिष्य की ओर कर
<br>दिया।
<br>शिष्य दंग रह गया. क्योंकि उसके मन के प्रत्येक
<br>कोने में राग,द्वेष, अहंकार, क्रोध जैसे दुर्गुण
<br>विद्यमान थे। गुरुजी बोले, 'वत्स यह दर्पण मैंने
<br>तुम्हें अपने दुर्गुण देखकर जीवन में सुधार लाने के
<br>लिए दिया था दूसरों के दुर्गुण देखने के लिए
<br>नहीं। जितना समय तुमने दूसरों के दुर्गुण देखने में
<br>लगाया उतना समय यदि तुमने स्वयं को सुधारने
<br>में लगाया होता तो अब तक तुम्हारा व्यक्तित्व
<br>बदल चुका होता। मनुष्य की सबसे
<br>बड़ी कमजोरी यही है कि वह दूसरों के दुर्गुण
<br>जानने में ज्यादा रुचि रखता है। वह स्वयं
<br>को सुधारने के बारे में नहीं सोचता। इस दर्पण
<br>की यही सीख है जो तुम नहीं समझ सके।'Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-39794469150083939212014-10-16T22:46:00.001-07:002014-11-09T03:32:06.258-08:00माँ बाप की सेवाएक बालक अपने माँ-बाप की खूब
<br>सेवा किया करता !
<br>उसके दोस्त उससे कहते कि अगर इतनी सेवा तुमने
<br>भगवान की की होती तो तुम्हे भगवान मिल
<br>जाते !
<br>लेकिन इन सब चीजो से अनजान वो अपने
<br>माता पिता की सेवा करता रहा !
<br>एक दिन उसकी माँ बाप की सेवा-भक्ति से खुश
<br>होकर भगवान धरती पर आ गये !
<br>उस वक्त वो बालक अपनी माँ के पाँव
<br>दबा रहा था !
<br>भगवान दरवाजे के बाहर से बोले-
<br>दरवाजा खोलो बेटा मैं तुम्हारी माता-
<br>पिता की सेवा से प्रसन्न होकर तुम्हे वरदान
<br>देने आया हूँ !
<br>बालक ने कहा -इंतजार करो प्रभु मैं
<br>माँ की सेवा मे लगा हूँ !
<br>भगवान बोले -देखो मैं वापस चला जाऊँगा !
<br>बालक ने कहा -आप जा सकते है भगवान मैं
<br>सेवा बीच मे नही छोड़ सकता !
<br>कुछ देर बाद उसने
<br>दरवाजा खोला तो क्या देखता है भगवान
<br>बाहर खड़े थे !
<br>भगवान बोले -लोग मुझे पाने के लिये कठोर
<br>तपस्या करते है पर मैं तुम्हे सहज ही मे मिल
<br>गया पर तुमने
<br>मुझसे प्रतीक्षा करवाई !
<br>बालक ने जवाब दिया -हे ईश्वर जिस माँ बाप
<br>की सेवा ने आपको मेरे पास आने को मजबूर कर
<br>दिया उन माँ बाप की सेवा बीच मे छोड़कर मैं
<br>दरवाजा खोलने कैसे आता !
<br>यही इस जिंदगी का सार है !Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529683731716015614.post-42324375493973715642014-10-15T19:11:00.001-07:002014-11-09T03:32:06.261-08:00George Bernard Shaw जार्ज बर्नार्ड शॉअंग्रेजी के प्रसिद्ध साहित्यकार जार्ज
<br />
बर्नार्ड शॉ को कौन नहीं जानता । उन्होंने
<br />
अपना जीवन
<br />
प्रापर्टी डीलर के यहाँ उसके कार्यालय में
<br />
क्लर्क की नौकरी से प्रारंभ किया था।
<br />
प्रापर्टी डीलर और कई
<br />
काम करता था यथा मकानों को किराए पर
<br />
उठाना, बीमा एजेंसी चलाना आदि ।
<br />
उसके यहाँ शॉ का काम था मकानों तथा अन्य
<br />
स्थानों के किराए वसूल करना, बीमे की किश्तें
<br />
उगाहना,
<br />
टैक्सों की वसूली और अदायगी कराना । ये काम
<br />
करते समय उन्हें बड़ी-बड़ी रकमों का लेन-देन
<br />
करना पड़ता था और बड़े-बड़े प्रतिष्ठित
<br />
व्यक्तियों से संपर्क करना पड़ता था ।
<br />
स्वभाव से बर्नार्ड शॉ इतने विनम्र थे
<br />
कि किसी के साथ सख्ती या जोर
<br />
जबर्दस्ती नहीं कर पाते थे और
<br />
लोग थे कि उनकी परवाह ही नहीं करते । इन
<br />
कारणों से वे अपने काम में अपेक्षित
<br />
सफलता प्राप्त नहीं
<br />
कर पा रहे थे । यद्यपि उनके मालिक को इससे
<br />
कोई शिकायत नहीं थी, परंतु स्वयं बर्नार्ड
<br />
शॉ को अपने
<br />
काम से संतोष नहीं था ।
<br />
एक दिन उन्होंने अपने मालिक को सूचित करते
<br />
हुए पत्र लिखा, जिसे त्याग पत्र
<br />
की ही संज्ञा दी जा सकती
<br />
है कि 'महोदय मैं आपको सूचित कर
<br />
देना चाहता हूँ कि इस महीने के बाद मैं आपके
<br />
यहाँ काम नहीं कर सकूँगा ।
<br />
कारण यह है कि जितना वेतन आप मुझे देते हैं मैं
<br />
उतना काम कर नहीं पाता ।'
<br />
मालिक तो उनके काम से बहुत संतुष्ट था । वह
<br />
उनके स्वभाव से बहुत प्रसन्न भी था कि उनके
<br />
बारे में कभी
<br />
किसी देनदार ने कोई शिकायत नहीं की । उसने
<br />
बर्नार्ड शॉ को बहुत समझाया परन्तु
<br />
शॉ को यह उचित लग ही
<br />
नहीं रहा था कि जितना वेतन वे लेते हैं
<br />
इतना काम भी वे नहीं कर पाते ।Unknownnoreply@blogger.com0