कण-कण में भगवान
रामकृष्ण परमहंस एक कहानी सुनाते थे। एक
लड़का था।
उसे उसके गुरु ने बताया कि 'भगवान हर जगह है। हर
जीवित प्राणी में है।’
गोविंद ने गुरु के ज्ञान को शब्दश: स्वीकार कर
लिया। उसने वादा किया कि वह हर जगह भगवान
को देखेगा। एक बार वह गांव में भ्रमण कर रहा था।
तभी हाथी पागल हो गया। उसके ऊपर बैठा महावत
उसे नियंत्रित नहीं कर पा रहा था। वह चिल्ला-
चिल्लाकर उसकी राह में आने वाले लोगों को हटने
के लिए कह रहा था। लेकिन गोविंद अभी भी अपने
गुरु की बात याद आ रही थी- 'गुरु ने हमसे कहा है
कि हर वस्तु भगवान है। हाथी भी भगवान है। मैं
भी भगवान हूं। एक भगवान को दूसरे से
क्यों डरना चाहिए?’
हाथी आया और उसने गोविंद को घायल कर दिया।
बुरी तरह से घायल गोविंद को गुरु के आश्रम में
लाया गया।
गुरु ने पूछा- 'गोविंद! तुमने मूर्खतापूर्ण तरीके से काम
क्यों किया?’
जब सब लोग दौड़ रहे थे तब तुमने दौड़कर
अपना बचाव क्यों नहीं किया?’
गोविंद ने जवाब दिया- 'लेकिन गुरुजी! क्या आपने
हमें नहीं सिखाया कि हर वस्तु में भगवान है? फिर
भगवान से डरने की क्या जरूरत है?’ गु
रु हंस दिए। उन्होंने जवाब दिया, 'ओह गोविंद! इसमें
कोई संदेह नहीं कि हाथी भगवान है। लेकिन महावत
भी भगवान है। क्या महावत-भगवान ने तुम्हें रास्ते से
हटने को नहीं कहा था? तब तुमने महावत भगवान
की क्यों नहीं सुनी?’
युवा गोविंद को तब गुरु की बात के सही मायने
समझ आए- अंदरुनी सच्चाई सभी में एक-सी है। लेकिन
बाहरी तौर पर काफी अंतर है। बुद्धिमानी यह
समझने में ही है कि कई प्रस्तुतियों के बीच आप उसके
पीछे की सच्चाई को जान पाओ। हम भी हमारे
सच्चे गुरु की तलाश में, पागल हाथी के संदेश को गलत
तरीके से न समझ लें, जो अपने पागलपन की वजह से
लोगों को रास्ते से हट जाने के लिए कह रहा था।
यदि स्रोत से संदेश अस्पष्ट है तो हमें वहीं संदेश
बुद्धिमान महावत से लेना चाहिए था, जो मौखिक
रूप से पागल हाथी के रास्ते से हटने को कह रहा था।
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