Anger control क्रोध पर नियंत्रण
भूदान- यज्ञ के दिनों की बात है|
विनोबाजी की पद-यात्रा उत्तर प्रदेश में चल
रही थी| उनके साथ बहुत थोड़े लोग थे|
मीराबहन के आश्रम 'पशुलोक' से हम हरिद्वार आ
रहे थे| विनोबाजी की कमर और पैर में चोट
लगी थी, उन्हें कुर्सी पर ले जाया जाता था, पर
बीच-बीच में वे कुर्सी से उतरकर पैदल चलने लगते
थे|
एक दिन जब वे पैदल चल रहे थे तो एक भाई उनके
पास आकर बोले - "बाबा मुझे गुस्सा बहुत
आता है| कैसे दूर करूं?"
विनोबाजी ने कहा - "बचपन में मुझे भी बहुत
गुस्सा आता था| मैं अपने पास
मिश्री रखता था जैसे
ही गुस्सा आया कि मिश्री का एक टुकड़ा मुंह में
डाल लिया| गुस्सा काबू में आ जाता था|"
"लेकिन कभी-
कभी ऐसा भी होता था कि गुस्सा आ
जाता था और मिश्री पास में नहीं होती थी|"
"तब आप क्या करते थे?" उन भाई ने उत्सुकता से
पूछा|
विनोबाजी ने कहा - "तब मैंने सोचा कि ऐसे
समय क्या किया जाए| सोचते-सोचते एक बात
ध्यान में आई| जब हमारे मन के प्रतिकूल कोई
चीज आती है तो हम एकदम उत्तेजित होते हैं|
यदि पहले क्षण को हम टाल जाएं तो गुस्से
को सहज ही जीत सकते हैं| हर्ष और विषाद से
हम तभी अभिभूत होते हैं
जबकि उनका पहला क्षण हम पर
हावी हो जाता है| उस क्षण को टालना शुरू में
थोड़ा कठिन होता है, लेकिन अभ्यास से वह बहुत
आसान हो जाता है|"
आगे विनोबाजी ने बताया कि इसका उन्होंने खूब
अभ्यास कर लिया| बापू को गोली लगी,
जमनालालजी का देहांत हुआ, किसी ने आकर खबर
दी, लेकिन उनके मन पर इसका कोई असर
नहीं हुआ| वे जो काम कर रहे थे, करते रहे, लेकिन
विनोबाजी ने कहा - "आगे जाकर लगा कि बापू
और जमनालालजी के जाने से
कितनी बड़ी क्षति हुई, किंतु पहले क्षण
तो ऐसा रहा, जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
विनोबाजी की पद-यात्रा उत्तर प्रदेश में चल
रही थी| उनके साथ बहुत थोड़े लोग थे|
मीराबहन के आश्रम 'पशुलोक' से हम हरिद्वार आ
रहे थे| विनोबाजी की कमर और पैर में चोट
लगी थी, उन्हें कुर्सी पर ले जाया जाता था, पर
बीच-बीच में वे कुर्सी से उतरकर पैदल चलने लगते
थे|
एक दिन जब वे पैदल चल रहे थे तो एक भाई उनके
पास आकर बोले - "बाबा मुझे गुस्सा बहुत
आता है| कैसे दूर करूं?"
विनोबाजी ने कहा - "बचपन में मुझे भी बहुत
गुस्सा आता था| मैं अपने पास
मिश्री रखता था जैसे
ही गुस्सा आया कि मिश्री का एक टुकड़ा मुंह में
डाल लिया| गुस्सा काबू में आ जाता था|"
"लेकिन कभी-
कभी ऐसा भी होता था कि गुस्सा आ
जाता था और मिश्री पास में नहीं होती थी|"
"तब आप क्या करते थे?" उन भाई ने उत्सुकता से
पूछा|
विनोबाजी ने कहा - "तब मैंने सोचा कि ऐसे
समय क्या किया जाए| सोचते-सोचते एक बात
ध्यान में आई| जब हमारे मन के प्रतिकूल कोई
चीज आती है तो हम एकदम उत्तेजित होते हैं|
यदि पहले क्षण को हम टाल जाएं तो गुस्से
को सहज ही जीत सकते हैं| हर्ष और विषाद से
हम तभी अभिभूत होते हैं
जबकि उनका पहला क्षण हम पर
हावी हो जाता है| उस क्षण को टालना शुरू में
थोड़ा कठिन होता है, लेकिन अभ्यास से वह बहुत
आसान हो जाता है|"
आगे विनोबाजी ने बताया कि इसका उन्होंने खूब
अभ्यास कर लिया| बापू को गोली लगी,
जमनालालजी का देहांत हुआ, किसी ने आकर खबर
दी, लेकिन उनके मन पर इसका कोई असर
नहीं हुआ| वे जो काम कर रहे थे, करते रहे, लेकिन
विनोबाजी ने कहा - "आगे जाकर लगा कि बापू
और जमनालालजी के जाने से
कितनी बड़ी क्षति हुई, किंतु पहले क्षण
तो ऐसा रहा, जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
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