Moral Story
एक चोर अक्सर एक साधु के पास आता और
उससे ईश्वर से साक्षात्कार का उपाय
पूछा करता था। लेकिन साधु टाल देता था।
वह
बार-बार यही कहता कि वह इसके बारे में
फिर
कभी बताएगा। लेकिन चोर पर इसका असर
नहीं पड़ता था। वह रोज पहुंच जाता। एक
दिन
चोर का आग्रह बहुत बढ़ गया। वह जमकर बैठ
गया। उसने कहा कि वह बगैर उपाय जाने
वहां से
जाएगा ही नहीं। साधु ने चोर को दूसरे दिन
सुबह
आने को कहा। चोर ठीक समय पर आ गया।
साधु ने कहा, 'तुम्हें सिर पर कुछ पत्थर रखकर
पहाड़ पर चढ़ना होगा। वहां पहुंचने पर
ही ईश्वर
के दर्शन की व्यवस्था की जाएगी।' चोर के
सिर
पर पांच पत्थर लाद दिए गए और साधु ने उसे
अपने पीछे-पीछे चले आने को कहा। इतना भार
लेकर वह कुछ दूर ही चला तो उस बोझ से
उसकी गर्दन दुखने लगी। उसने अपना कष्ट
कहा तो साधु ने एक पत्थर फिंकवा दिया।
थोड़ी देर चलने पर शेष भार भी कठिन
प्रतीत
हुआ तो चोर की प्रार्थना पर साधु ने
दूसरा पत्थर भी फिंकवा दिया। यही क्रम
आगे
भी चला। ज्यों-ज्यों चढ़ाई बढ़ी, थोडे़
पत्थरों को ले चलना भी मुश्किल
हो रहा था। चोर
बार-बार अपनी थकान व्यक्त कर रहा था।
अंत
में सब पत्थर फेंक दिए गए और चोर
सुगमतापूर्वक पर्वत पर चढ़ता हुआ ऊंचे शिखर
पर जा पहुंचा।
साधु ने कहा, 'जब तक तुम्हारे सिर पर
पत्थरों का बोझ रहा, तब तक पर्वत के ऊंचे
शिखर पर तुम्हारा चढ़ सकना संभव
नहीं हो सका। पर जैसे ही तुमने पत्थर फेंके
वैसे
ही चढ़ाई सरल हो गई। इसी तरह
पापों का बोझ
सिर पर लादकर कोई मनुष्य ईश्वर
को प्राप्त
नहीं कर सकता।' चोर ने साधु का आशय समझ
लिया। उसने कहा, 'आप ठीक कह रहे हैं। मैं
ईश्वर को पाना तो चाहता था पर अपने बुरे
कर्मों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था।'
उस दिन
से चोर पूरी तरह बदल गया।
उससे ईश्वर से साक्षात्कार का उपाय
पूछा करता था। लेकिन साधु टाल देता था।
वह
बार-बार यही कहता कि वह इसके बारे में
फिर
कभी बताएगा। लेकिन चोर पर इसका असर
नहीं पड़ता था। वह रोज पहुंच जाता। एक
दिन
चोर का आग्रह बहुत बढ़ गया। वह जमकर बैठ
गया। उसने कहा कि वह बगैर उपाय जाने
वहां से
जाएगा ही नहीं। साधु ने चोर को दूसरे दिन
सुबह
आने को कहा। चोर ठीक समय पर आ गया।
साधु ने कहा, 'तुम्हें सिर पर कुछ पत्थर रखकर
पहाड़ पर चढ़ना होगा। वहां पहुंचने पर
ही ईश्वर
के दर्शन की व्यवस्था की जाएगी।' चोर के
सिर
पर पांच पत्थर लाद दिए गए और साधु ने उसे
अपने पीछे-पीछे चले आने को कहा। इतना भार
लेकर वह कुछ दूर ही चला तो उस बोझ से
उसकी गर्दन दुखने लगी। उसने अपना कष्ट
कहा तो साधु ने एक पत्थर फिंकवा दिया।
थोड़ी देर चलने पर शेष भार भी कठिन
प्रतीत
हुआ तो चोर की प्रार्थना पर साधु ने
दूसरा पत्थर भी फिंकवा दिया। यही क्रम
आगे
भी चला। ज्यों-ज्यों चढ़ाई बढ़ी, थोडे़
पत्थरों को ले चलना भी मुश्किल
हो रहा था। चोर
बार-बार अपनी थकान व्यक्त कर रहा था।
अंत
में सब पत्थर फेंक दिए गए और चोर
सुगमतापूर्वक पर्वत पर चढ़ता हुआ ऊंचे शिखर
पर जा पहुंचा।
साधु ने कहा, 'जब तक तुम्हारे सिर पर
पत्थरों का बोझ रहा, तब तक पर्वत के ऊंचे
शिखर पर तुम्हारा चढ़ सकना संभव
नहीं हो सका। पर जैसे ही तुमने पत्थर फेंके
वैसे
ही चढ़ाई सरल हो गई। इसी तरह
पापों का बोझ
सिर पर लादकर कोई मनुष्य ईश्वर
को प्राप्त
नहीं कर सकता।' चोर ने साधु का आशय समझ
लिया। उसने कहा, 'आप ठीक कह रहे हैं। मैं
ईश्वर को पाना तो चाहता था पर अपने बुरे
कर्मों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था।'
उस दिन
से चोर पूरी तरह बदल गया।
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