नानी की शिक्षाप्रद कहानियाँ Nanny's instructive stories
एक महात्मा विचरण करते हुए एक गृहस्थ के
पास पहुंचे । गृहस्थ ने उनका पर्याप्त आदर-
सत्कार किया । बातों-बातों में उन्होंने
गृहस्थ को बताया कि वे पशु-
पक्षियों की बोली समझते हैं । उसके पास से
अपने आश्रम लौटते समय उन्होंने
व्यक्ति को आशीर्वचनों से उपकृत
करना चाहा ।
वे बोले, "कहो, क्या आशीर्वाद दूं मैं तुम्हें ?
तुम किस दिशा में आगे बढ़ना और सफल
होना चाहोगे ?"
महात्मा ने गृहस्थ को उसकी इच्छाओं के
अनुरूप आशीर्वाद दिया । उनके विदा होते
समय गृहस्थ ने एक और मांग उनके सामने रख
दी । उसने कहा, "महाराज, आपने कहा है
कि आप पशु- पक्षियों की बातें समझ सकते हैं ।
आप यदि मुझ
पर प्रसन्न हों तो कृपया वह विद्या मुझे
भी सिखाते जाइये ।"
महात्मा ने उसे समझाते हुए कहा,
"देखो भाई, यह विद्या तुम्हारे काम
की नहीं है । इसके प्रयोग से तुम्हें मानसिक
कष्ट ही भोगना पड़ सकता है । न जाने कब
कौन-सी बातें तुम्हारे कान में पड़ें और तुम
चिंताग्रस्त हो जाओ । इस
विद्या की इच्छा मत करो । अन्य
जीवों की बातें सुनने से क्या लाभ ?"
लेकिन महात्मा की बातें वह गृहस्थ
नहीं माना । अंत में उसने इच्छित
विद्या पा ही ली । आरंभ में उस
विद्या का कोई दुरुपयोग उसके
हाथों नहीं हुआ । परंतु बाद में एक मौके पर
उसने अपने पालतू कुत्ते तथा मुर्गे के बीच
की बातचीत सुन ली । मुर्गे ने कुत्ते से कहा,
"सुनो, अपने मालिक के घोड़े का पिछला एक
पांव आज कुछ कांप रहा था । तुम्हें मालूम है
कि इसका क्या मतलब है ?" कुत्ते ने उससे
कहा कि इस बारे में उसे कोई
जानकारी नहीं । तब मुर्गे ने उसे
समझाया कि घोड़ा कुछ ही दिनों में बीमार
पड़कर चल बसेगा ।
वह गृहस्थ संयोग से उन दोनों की बातें सुन
रहा था । उसने सोचा कि ऐसे घोड़े को अब
पालने से क्या लाभ, क्यों न उसे बेचकर
पैसा कमाया लिया जाये ।
और उसने घोड़े को बेच दियाख् जिसकी बाद में
मौत हो गयी । गृहस्थ को पशु-
पक्षियों की बोली जानने से क्या लाभ
हो सकता है यह बात समझ में आ गयी । अब
वह ऐसे हर वार्तालाप पर ध्यान देने लगा ।
कुछ समय के पश्चात् कुत्ते-मुर्गे
की इसी प्रकार की एक और बातचीत उसके
कान में पड़ी । मुर्गा बोला, "बेचारा गधे
की हालत ठीक नहीं है । आज
उसका पिछला पांव कांप रहा था । यह
निकट भविष्य में
उसकी सुनिश्चित मृत्यु का संकेत है ।"
इस बार भी वह अपने गधे को बाजार में बेच
आया । समय बीता और पशु-पक्षी संवाद समझ
पाने की अपनी सामर्थ्य का लाभ वह गृहस्थ
यदा-कदा उठाता रहा । परंतु एक दिन उस
विद्या के लाभ की उसकी खुशी जाती रही ।
उसने फिर कुत्ते-मुर्गे की परस्पर बातें
सुनीं और उसके होस उड़ गये । मुर्गा कुत्ते से
कह रहा था, "बहुत बड़ी चिंता की बात है,
भाई । क्या बताऊं तुम्हें ! अपने मालिक
की अगले वर्ष इसी माह मुत्यु का योग है ।
अगर मालिक ने अपने बीमार घोड़े-गधे
दयाभाव से अपने ही पास रखे
होते और उनकी यथासंभव
तीमारदारी की होती तो उन्हें पुण्यलाभ
मिला होता और उन्हें दीर्घायुष्य
मिला होता । लेकिन अब कुछ
नहीं हो सकता ।"
उनकी बातों से वह गृहस्थ घबड़ा गया । वह
खोजते हुए महात्मा के आश्रम पर पहुंचा और
वहां उसने अपनी व्यथा सुना डाली ।
महात्मा बोले, "अब देर हो चुकी है ।
यदि तुमने मेरी बात मान ली होती और उस
विद्या में रुचि न ली होती तो तुम
सुखी रहते । मुझे मालूम था कि तुम लोभ-
लालच से नहीं बच पाओगे और उस
विद्या का दुरुपयोग करोगे । बिरले
ही होते
हैं जो लोभ से अपने को बचा पाते हैं । अब
जाओ और जीवन का शेष समय शुभकर्मों में
लगाकर परलोक सुधारो ।"
गृहस्थ को निराश हो लौटना पड़ा ।
पास पहुंचे । गृहस्थ ने उनका पर्याप्त आदर-
सत्कार किया । बातों-बातों में उन्होंने
गृहस्थ को बताया कि वे पशु-
पक्षियों की बोली समझते हैं । उसके पास से
अपने आश्रम लौटते समय उन्होंने
व्यक्ति को आशीर्वचनों से उपकृत
करना चाहा ।
वे बोले, "कहो, क्या आशीर्वाद दूं मैं तुम्हें ?
तुम किस दिशा में आगे बढ़ना और सफल
होना चाहोगे ?"
महात्मा ने गृहस्थ को उसकी इच्छाओं के
अनुरूप आशीर्वाद दिया । उनके विदा होते
समय गृहस्थ ने एक और मांग उनके सामने रख
दी । उसने कहा, "महाराज, आपने कहा है
कि आप पशु- पक्षियों की बातें समझ सकते हैं ।
आप यदि मुझ
पर प्रसन्न हों तो कृपया वह विद्या मुझे
भी सिखाते जाइये ।"
महात्मा ने उसे समझाते हुए कहा,
"देखो भाई, यह विद्या तुम्हारे काम
की नहीं है । इसके प्रयोग से तुम्हें मानसिक
कष्ट ही भोगना पड़ सकता है । न जाने कब
कौन-सी बातें तुम्हारे कान में पड़ें और तुम
चिंताग्रस्त हो जाओ । इस
विद्या की इच्छा मत करो । अन्य
जीवों की बातें सुनने से क्या लाभ ?"
लेकिन महात्मा की बातें वह गृहस्थ
नहीं माना । अंत में उसने इच्छित
विद्या पा ही ली । आरंभ में उस
विद्या का कोई दुरुपयोग उसके
हाथों नहीं हुआ । परंतु बाद में एक मौके पर
उसने अपने पालतू कुत्ते तथा मुर्गे के बीच
की बातचीत सुन ली । मुर्गे ने कुत्ते से कहा,
"सुनो, अपने मालिक के घोड़े का पिछला एक
पांव आज कुछ कांप रहा था । तुम्हें मालूम है
कि इसका क्या मतलब है ?" कुत्ते ने उससे
कहा कि इस बारे में उसे कोई
जानकारी नहीं । तब मुर्गे ने उसे
समझाया कि घोड़ा कुछ ही दिनों में बीमार
पड़कर चल बसेगा ।
वह गृहस्थ संयोग से उन दोनों की बातें सुन
रहा था । उसने सोचा कि ऐसे घोड़े को अब
पालने से क्या लाभ, क्यों न उसे बेचकर
पैसा कमाया लिया जाये ।
और उसने घोड़े को बेच दियाख् जिसकी बाद में
मौत हो गयी । गृहस्थ को पशु-
पक्षियों की बोली जानने से क्या लाभ
हो सकता है यह बात समझ में आ गयी । अब
वह ऐसे हर वार्तालाप पर ध्यान देने लगा ।
कुछ समय के पश्चात् कुत्ते-मुर्गे
की इसी प्रकार की एक और बातचीत उसके
कान में पड़ी । मुर्गा बोला, "बेचारा गधे
की हालत ठीक नहीं है । आज
उसका पिछला पांव कांप रहा था । यह
निकट भविष्य में
उसकी सुनिश्चित मृत्यु का संकेत है ।"
इस बार भी वह अपने गधे को बाजार में बेच
आया । समय बीता और पशु-पक्षी संवाद समझ
पाने की अपनी सामर्थ्य का लाभ वह गृहस्थ
यदा-कदा उठाता रहा । परंतु एक दिन उस
विद्या के लाभ की उसकी खुशी जाती रही ।
उसने फिर कुत्ते-मुर्गे की परस्पर बातें
सुनीं और उसके होस उड़ गये । मुर्गा कुत्ते से
कह रहा था, "बहुत बड़ी चिंता की बात है,
भाई । क्या बताऊं तुम्हें ! अपने मालिक
की अगले वर्ष इसी माह मुत्यु का योग है ।
अगर मालिक ने अपने बीमार घोड़े-गधे
दयाभाव से अपने ही पास रखे
होते और उनकी यथासंभव
तीमारदारी की होती तो उन्हें पुण्यलाभ
मिला होता और उन्हें दीर्घायुष्य
मिला होता । लेकिन अब कुछ
नहीं हो सकता ।"
उनकी बातों से वह गृहस्थ घबड़ा गया । वह
खोजते हुए महात्मा के आश्रम पर पहुंचा और
वहां उसने अपनी व्यथा सुना डाली ।
महात्मा बोले, "अब देर हो चुकी है ।
यदि तुमने मेरी बात मान ली होती और उस
विद्या में रुचि न ली होती तो तुम
सुखी रहते । मुझे मालूम था कि तुम लोभ-
लालच से नहीं बच पाओगे और उस
विद्या का दुरुपयोग करोगे । बिरले
ही होते
हैं जो लोभ से अपने को बचा पाते हैं । अब
जाओ और जीवन का शेष समय शुभकर्मों में
लगाकर परलोक सुधारो ।"
गृहस्थ को निराश हो लौटना पड़ा ।
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